नारी तेरा उद् बोधन……संबोधन!
मैं नारी हूँ, सृष्टि का सृजनहार ! मैं इड़ा भी हूँ और श्रद्धा भी हूँ . मैं सारस्वत प्रदेश की देवी… सरस्वती. जिसकी गोद में सभ्यता ने आँखें खोली, मैं ही विश्ववरा, मैं ही शांगधर, मैं ही विज्जा.. मैं ही गार्गी ! हाँ वही गार्गी जिसने आदिगुरू शंकराचार्य के छक्के छुड़ा दिए ! अरे गज़ब ! मेरी गाथा ‘थेरी गाथा’.
नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में,
पीयूष स्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में.
मेरा प्रभुत्व ऐसा कि….
अबला के डर से भाग चले वे उससे भी निर्बल निकले,
नारी निकली तो असती है नर यति कहा कर चल निकले.
अपनी असीम क्षमताओं, अदम्य शौर्य और साहस का प्रतिमान – लक्ष्मी बाई, चाँद बीवी, जॉन ऑफ आर्क के रूप में प्रकट होती आई हूँ. इतिहास मेरी गौरव गाथा से त्रासदी गाथा का मूक दर्शक रहा है. मेरा ममत्व, मेरी सहानुभूति और मेरा सरल हृदया स्वभाव को शायद पुरूष प्रधान समाज ने मेरी कमजोरी समझ लिया. तभी तो
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी.
हे सृष्टि के सृजनहार, पालनहार! कभी सोंचा तुमने कि क्यों यह देवकी की कालकोठरी तुम्हारे जीवन की नियति बन गई है? यह कैसी विडम्बना है कि तुम्हारी सादगी तुम्हारा बंधन बन जाए. जिसे लोग लोकमर्यादा कहते हैं…. शायद तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण तुम्हें अंतःसलिला सरस्वती का रूप धारण करना पड़ा.
इस कुंठा से बाहर निकलना होगा. वर्तमान परिस्थितियों में आँखों में आँखें डालकर उत्तर तलाशना होगा. काश यदि यह पहले हुआ होता तो समानता के लिये जद्दो-जहद नहीं करना पड़ता.
अस्तु….! हमें अपने आप का अपने आप पर मंथन करना होगा, चिंतन करना होगा. शायद पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध ने देशी संस्कारों के ऊपर परत जमा कर दी है. सचमुच भौतिक स्वतंत्रता पाई है परंतु मानसिक पराधीनता अब भी है. हमें इस दुराग्रह से बाहर आना ही होगा. आज आँचल का दायरा इतना संकीर्ण क्यों है? इतना संकीर्ण कि उसे स्वयं अपनी स्मिता और अस्तीत्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है. उठो जाग्रत हो! तुम्हारी चिर निद्रा ही तुम्हारा बंधन है. अधिकार भीख माँगने की वस्तु नहीं है, इसे छिनना पड़ता है. भीख में मिला हुआ अधिकार गेय नहीं हेय है.
आज तुमने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, शिक्षामंत्री, विदेशमंत्री, वैज्ञानिक, रचनाकार कवयित्री हो न जाने किन-किन क्षेत्रों में अपना लोहा मनवाया है. फिर यह हिचक कैसी ?
इतिहास के आइने में महिला दिवस 8 मार्च 1910 से मनाया जाना प्रारंभ हुआ जो तुम्हारी उपस्थिति का तूर्य नाद है. तुम्हारी विजय गाथा इससे आगे तक है तुमने जो अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज कराई है वह अद्वितीय है अप्रतीम है.