नारी -चंद दोहे
ईश रचित संसार की, आर्किटैक्ट है नार
सलिला स्नेहाचार की, धरती का आधार
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पाया माँ की गोद में, ममता का संसार
बडे चैन से सो गया, बचपन पाँव पसार
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नारी इस संसार में , जस थैली की चाय
गर्म नीर में जब पड़े ,निज बल तभी बताय
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पुरूष बनाया ईश ने, यह था प्रथम प्रयास
नारी को फिर तब रचा,जब ली कला तराश
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भार्या, माँ, भगिनी,सुता , नारी रूप अनेक
लेकिन सभी हृदय बसी , ममता मूरत एक
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नार जगत में थामती , संबंधों की डोर
है अनन्य हर रूप में , ज्यों बासंती भोर
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संस्कृति के पर्याय हैं , नदी नार औ’ नीर
इनको पहुँचे पीर तो, बात बहुत गंभीर
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माँ के जैसा ना मिला, हमदम सच्चा मीत
प्यार रहा अक्षित सदा, हार हुई या जीत
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कितना भी सुन लीजिये, मधुर मदिर संगीत
अब तक गूंजें कान में , माँ के लोरी गीत
-ओम प्रकाश नौटियाल ,बडौदा ,गुजरात ,मोबा. 9427345810