नारीवाद
नारीवाद पर
नित नये
उठते प्रश्न
झकझोरते हैं आत्मा को
पूछते हैं कई सारे प्रश्न
समय सभी को एक नये साँचे में
ढाल देता है
पुरुष और स्त्री दोनों का स्वरूप
परिवर्त्तित होता है
परिपक्व होते हैं हम
नारीवाद पर बहस में तो
खूब बढ़ चढ़ कर
लेते हैं हिस्सा
लेकिन जब नारीवादी
सास बनती हैं
तब बहू वाली
पुरानी मानसिकता क्यों
नहीं होती
क्यों पल प्रतिपल
एक सास बनने की
प्यास बढ़ती ही चली जाती है
आनंद आता है उस वक़्त जब
बहुएँ सास के सामने अपने माता-पिता को
दी जा रही गालियों पर
फफक-फफक कर रोती हैं
रोने पर भी उनकी पिटाई होती है
उन्हें पूरे परिवार वाले रोते देखते हैं
खुश होती हैं-देवियाँ
रो रही है हमारी बहु,
विलाप कर रही है हमारी भाभी
खुश होती हैं ननद देवियाँ
परमानंद में होती हैं
सास-जेठानी
नारीवाद है यह
प्रतिदिन जाने कितनी बहन बेटियाँ
जल रही हैं
पहले प्रताड़ना की आग में
फिर धधकते लौ में,
देवी पर अत्याचार
अनाचार की केंद्रबिंदु
हमेशा से देवी ही रही हैं-नारीवादी।
ढकोसले क्यों
क्यों नारीवाद
बनिए नारीवादी
पर आरंभ
अपने घर से कीजिए
यदि आपके घर में
बहुओं की आंखों में
आँसू नहीं आते
वो हँसती, खिलखिलाती हैं
तो आप सशक्त नारीवादी हैं।
-अनिल कुमार मिश्र