नापसंद जूते
नापसंद जूते
युवक यशवंत रूठा था। क्योंकि पापा जो जूते लाए थे। वो थे तो ब्रांडेड लेकिन उसे पसंद नहीं थे।
पास बैठे दादा जी ने उसे बताया कि वे बिना जूते डाले ही विद्यालय जाते थे।
ज्येष्ठ-आषाढ़ की दोपहर में जब छुट्टी होती थी। तो दोपहर में गर्म रेत में पैर जलते थे। जलने से बचने के प्रयास में, पैरों के तलवे में पीपल या बरगद के पत्ते बांधकर चलते थे।
रास्ते में पशुओं का गोबर मिलता था, तो पैर उसमें डालकर पैरों की तपन शांत करते थे।
गोबर को दूर से देखकर ही अपना लेते। सहपाठियों से कह देते थे। वो सामने दिखाई दे रहा गोबर मेरा है। गोबर के लिए सहपाठियों में झगड़ा तक हो जाता था।
पसंद-नापसंद तो दूर की बात थी। चप्पल-जूते होते ही नहीं थे।
दादा जी की बात सुन कर यशवंत वही जूते जो पसंद नहीं थे। डालकर कॉलेज के लिए चल पड़ा।
-विनोद सिल्ला