नानी की बानी (राजीव छंद)
नानी की बानी
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गैया हमारी, माता कहाती ।
नानी हमें ये, महिमा सुनाती ।
गौ वध करे जो, पापी कहाता।
मरने के बाद, यातना पाता।।
जैसा बताया, होगा सही है।
यहाँ तो गंगा, उल्टी बही है।
गौ मांस बिकने, विदेशों जाता।
विश्व में पहला, नंबर लगाता ।
होती इसी से, भारी कमाई ।
सरकार पापी, कभी न कहाई।
नानी कहे तो, बकवास है जी ।
सत्ता करे जो , वही खास है जी ।
धंधा जमा है, यह कायदा है।
है आमदानी, बस फायदा है।
कहाँ धार्मिकता, गौ माँ पुकारे।
कटे न बचेगी, किसके सहारे
बूढी हुई है, कहती कहानी।
बेकार करती , बकवास नानी
व्यापार आस्था,बिन्दू नहीं है
गौ मांस बेचे,हिंदू नहीं है ।
गोपाल प्रभु जी, मोहन मुरारी।
वंशी बजैया,कल्याण कारी।।
गो वंश पीड़ा, आकर हरेंगे।
पापी निशाचर, उनसे मरेंगे ।
कटते पुकारे, हो दीन गैया।
तू ही बचाले,आकर कन्हैया।
कलिकाल दारुण, बनकर कसाई।
ले प्राण मेरे, शरण नाथ आई
सुन बात नानी,नूतन जमाना।
दिखता सभी को,पैसा कमाना।
बातें तुम्हारी, किसको सुहायें ।
ढलकर समय में,गंगा नहायें।
जो भी कहोगी, समझो बुरी हो।
सब लोग बोलें,छप्पन छुरी हो।
मुख पर न लाओ,ये धर्म बानी।
घर में रहो तुम, चुपचाप नानी।।
राजीव छंद ÷
18 मात्रायें 9,9 पर यति
आदि अंत का कोई
विशेष नियम नहीं मिला।
अन्य नाम माली भी है ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
16/6/23