नानी की पोटली
मैंने अपनी बाल्यावस्था के कुछ वर्ष अपनी नानी के साथ बिताये थे । यकीनन बहुत यादगार पल थे.. नानी..शहर की होकर भी, गांव के हर काम को बहुत सलीके से करती थीं। पूरी रामायण-महाभारत, उनको पूरे उद्धरण के साथ कंठस्थ थी। उनके सर पर सजा उनका आंचल, कभी किसी ने सरकते नहीं देखा..अंग्रेजो के समय की हर यातना उन्होंने मुझसे शेयर करी..और बातों-बातों में वो ये बताना कभी नहीं भूलीं कि ये समय नारियों के लिए बहुत सकारात्मक है। मैं अंर्तमन से, नानी से बहुत प्रभावित रही। सच कहूं तो वो प्रेरणा थी मेरी, पर इधर कई वर्षों से मैं उनसे नहीं मिल पाई…पहले मेरी पढ़ाई, फिर मेरी नौकरी, शादी और..
मैं माँ से नानी के हाल पूछती रही.. जाऊंगी मिलने कभी कहते-कहते, सोचते-सोचते कई वर्ष बीत गये । अब नानी की स्मरण-शक्ति भी क्षीण हो गई थी । मैं प्रशासनिक सेवा में सेलेक्ट हो गयी थी, कठिन रहा ये पूरा दौर.. लेकिन मेरी दिली इच्छा थी कि मैं नानी से मिलने जाऊं ।
मुझे इंटौंजा-महोना गाँव में दौरे के लिए जाना था…..मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा कि आखिरकार मैं नानी से मिलूंगी ।
अपने लाव-लश्कर के साथ मै अपने गाँव पहुँची….
20 वर्षों में भी जैसे सब कुछ वैसा ही सजा, सिमटा था ….वही बरगद,…वही आम..वही कोयल…वही मेरा प्यारा झूला… वही मंदिर, मैं सहसा भावुक हो उठी….
फिर अचानक याद आया, दौरे पर आई हूँ..
मेरे आने की खबर नानी ने सुन ली थी.. श्वेत वस्त्रों में लिपटी …चंदन का टीका लगाये नानी, मेरे बिना बुलाये, हाथों में जल भरा लोटा लिये खड़ी थी …
मैं चुपचाप उनके पास पहुँची… उन्होने सर से जल उतारा और भीतर चल दीं…
मैं बचपन से ये देखती चली आ रही थी….. यूँ मैं विज्ञान की छात्रा रही हूँ, पर पता नहीं क्यों, नानी का यूँ नज़रे उतारना मुझे बहुत अच्छा लगता था।
“आओ बेटा !” ..मैं तुरंत अंदर पहुंच गई… नानी ने गले से लगा लिया या यूँ कहो भींच लिया कसकर….
“मेरी लाजो .. अब अफसर बन गई है” कहकर माथा चूम लिया मेरा ।
मैं क्षणभर उनके आंचल की खुशबू में खोई रही ….फिर अचानक मुझे याद आया..
“नानी वो बाहर मेरे साथ कुछ लोग आये हैं, मुझे जाना होगा …”
“अच्छा बेटी जरा रूक …”
वो अंदर गई … अपने हाथों के बने लड्डू और पानी ले आईं……
“जा सबको खिला आ …”
“ओ.के. नानी, मैं अभी आयी….”
मैं लौटी तो नानी एक पोटली मेरे हाथ में देकर बोलीं
“ये तुम्हारा गिफ्ट है ..घर जाकर देखना”
नानी ने मेरे दोनो हाथ चूमें और मैं प्यार से … नानी के गले लग कर लौट आयी ..
बड़ी व्यस्तता का वो सप्ताह बीता…दौड़-भाग … मैं वो पोटली खोल नहीं पाई …
आज सुबह-सुबह मैसेज आया….
“नानी नहीं रहीं!”
अरे ! मैं सन्नाटे में …
तुरंत कमरे में भागी और नानी की पोटली ढूंढने लगी….
उनके हाथों की खुशबू…उनकी धोती के टुकड़े से बनी वो पोटली!
मेरी आँखो से अविरल अश्रुधार बह चली..
मैंने पोटली खोली …
मेरे बचपन की पहली फोटो…मेरे स्कूल की प्रथम मातृ दिवस की फोटो ….मेरी अखबार में छ्पी फोटो और मैंने जिले में टाप किया था, उसकी फोटो..और एक कागज लिपटा रखा था …मैंने भाव-विह्वल होकर उसको खोला..नानी का पत्र! मैंने पढ़ना शुरू किया …
“प्रिय वेणी
सदा सुखी रहो!
तुम मेरे परिवार की सबसे छोटी बच्ची हो …तुमसे मैं सदा से बहुत स्नेह करती रही हूँ…तुमसे बस कुछ बातें कहना चाहती हूँ, बेटा कभी गलत का साथ न देना, सदा सच के रास्ते पर चलना …कभी किसी से मत डरना… अपने लिए सदैव नये रास्ते बनाना, कुरीतियों को खत्म करने का अनवरत प्रयास करना और दुनिया की उन तमामों नारियों की सदैव मदद करना, उन्हें जागरूक करना, जो समाज के बेतरतीब रीति-रिवाजों के कारण शोषित हो रही हैं। जब मैं छोटी थी, तब तुम्हारी तरह अफसर बनने का सपना देखती थी…पर मैं अपनी ज़िम्मेदारियों में उलझकर, अपना सपना भूल गई थी, और मेरा वो सपना… आज पूरा हुआ….तुम्हारे रूप में, तुम्हारी नानी अफसर बन गई हैं …
खूब उन्नति करो बेटा और कभी कोई बाधा आये …कशमकश आये ..तो सिर्फ अपने मन की सुनना बस …
आशीर्वाद के साथ …
तुम्हारी नानी ..”
पोटली में रखे, मेरे और नानी के फेवरेट मोगरे के फूल…सूख चुके थे, पर अभी भी महक रहे थे …मैने अपनी पोटली …सीने से लगा ली ..मेरी बंद आँखो से नन्हें-नन्हें आँसू बह आये …और लगा जैसे मेरे साथ वो भी कह रहे थे…लव यू नानी…।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ