नादान प्रेम
बेटी! तू जल जायेगी, आग के गलियारों में।
प्यार नहीं बस कामुकता है, यह झूठे बाजारों में।।
जिसके पीछे पागल हो,
वह प्यासा है तेरे तन का।
किया न्यौछावर क्यों सब उस पर,
मेल नहीं था जो मन का।।
जिस दिन मन भर जायेगा उसका, छोड़ देगा बेकारों में।
प्यार नहीं बस कामुकता है,यह झूठे बाजारों में।।
दिखावे का प्रेम है करता,
हवस का वह शिकारी है।
आदत है यह प्यार दिखावा,
यही उसकी बीमारी है।।
दिखता तुझको मीठा वह, शामिल सागर खारों में।
प्यार नहीं बस कामुकता है, यह झूठे बाजारों में।।
पढ़ -लिखकर बेटी तू अपनी,
एक नई पहचान बनाओ।
सूरज बनकर उजाला सा,
जग में अपना नाम कमाओ।।
लुटा न देना स्वाभिमान तू, झूठे प्रेम करारों में।
प्यार नहीं बस कामुकता है, यह झूठे बाजारों में।।
अनिल “आदर्श”