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3 Dec 2024 · 1 min read

नाता(रिश्ता)

धुन लगी पाठ .. का भरम हो
घुन लगी काठ ..का करम हो
रीढ़ नहीं धागे में ऐसा नरम हो
जीती नही ढोती सांसों धरम हो
धूल, मिट्टी में गलती अधकुचली
सब्जियों सी .. पंक पूर्ण हो
बासी रोटी के फफूंद सी कड़क कसैली हो
तार तार चिंदी सा वसन रूप खंड हो
रिसता है घाव नासूर ..वो पीड़ा हो
या कहूं ..की संताप.. देता
” नाता” हो…
या कहूं की संताप.. देता
रिश्ता हो…
अंजू पांडेय अश्रु

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