नाटक
“नाटक”
मानवीय जीवन के यापन में,
जब अपने अपनों के ही द्वारा,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को,
स्वच्छंदता, उत्श्रृंखलता मान,
सुख दुख, आनंद उल्लास को,
विलासिता या भावुकता जान,
हर बार, टोकने के प्रयत्न हुए,
हर संभव रोकने के जतन हुए,
तब पहने गए होंगे रंग, मुखौटे,
और रंगमंचों की छत्रछाया में,
मेलों तमाशों और लीलाओं में,
कई छदम रूपों की माया में,
उन दबी, सहमी संवेदनाओं को,
अनकही, अनछुई भावनाओं को,
व्यक्त करने का आधार मिला होगा,
और फिर “नाटक” का जन्म हुआ होगा
~ नितिन जोधपुरी “छीण”