नाज़ुक है जितने हालात
नाज़ुक है जितने हालात, उतनी ही नाज़ुक तबीयत हो चली है,
संसाधन के अभाव में, इंसानियत हताहत हो चली है।
फँसे हैं ऐसे मझधार में, जहाँ बेबस हुई है जिंदगी-
और ज़िंदगी के इस कसौटी पर, जीने की चाहत हो चली है।।
नाज़ुक है जितने हालात, उतनी ही नाज़ुक तबीयत हो चली है,
संसाधन के अभाव में, इंसानियत हताहत हो चली है।
फँसे हैं ऐसे मझधार में, जहाँ बेबस हुई है जिंदगी-
और ज़िंदगी के इस कसौटी पर, जीने की चाहत हो चली है।।