नाचे वन में मोर….
सरसी छंद…
देख बरसते बादल नभ से, नाचे वन में मोर।
सोता देखे जब जग सारा, हुलसे मन में चोर।
चंदा की मेघों से नभ में, खूब चले तकरार,
कभी चीरकर निकले बाहर, कभी मान ले हार।
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“मुक्तक माल” से