नागपंचमी
शिवशंकर के प्यारे,
होते गले हार सारे,
फुफकार छोड़कर,
दें शोभा अनमोल।
जग इनको भी माने,
भोले संग साथी जाने,
नागपंचमी में पूजे,
लावा व दूध घोल।
पर्यावरण खातिर,
घूमते होते हाजिर,
फिर क्यूँ मानव मारे,
लाठी व डंडे बोल।
यह विषधर कैसे,
डरे देख नर जैसे,
बचा कर जान भागे,
सुनत एक बोल।
पूजें सब सह बम,
दूजे मारे दौड़े हम,
पाए बिना दोष कभी,
नफरत क्यों घोल।
इनको बचाओ बाबू,
रखो ज्ञान पर काबू,
धरा संतुलन हेतु,
हैं जीव अनमोल।
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अशोक शर्मा,कुशीनगर, उ.प्र.
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