नाकाम ग़ज़ल के कुछ शेर
सन्नाटों भरी ये रात भी है
यादों वाली बरसात भी है।
नफ़रत करने वाले सैकड़ों है
इश्क़ कर सको तो बात भी है।
मैंने एक निगाह से देखा सबको
छोटी सोंच हो तो फिर जात भी है।
छल से ही हारा पाया है जमाना
तौर से हराओ तो मात भी है।
इश्क़ मुक्कम्मल न हो तो है ज़हर
मिल जाये तो सौगात भी है।
ये जल्दीबाज़ी में भी कोई मिलना हुआ भला
फुर्सत से मिल पाओ तो मुलाकात भी है।
नहीं चाहिए इस पूरे जहाँ का साथ मुझे
साथ गर तुम हो तो साथ क़ायनात भी है।।
“अभिनव”