नाकामयाब पुरुष की कहानी यूँ अनकही रह जाती है,उसकी पसंदीदा स्
नाकामयाब पुरुष की कहानी यूँ अनकही रह जाती है,उसकी पसंदीदा स्त्री को ही उसकी पसंद नहीं भाती है।।
सपनों का वो सैलाब दिल में लिए फिरता है,मगर दुनिया उसकी कोशिशों को सिरे से नकार जाती है।।
वो हर बार टूटकर भी खड़ा हो जाता है,मगर उसकी नाकामयाबी उसकी पहचान बन जाती है।।
जिसे देखा था उसने हर खुशी में साथ चलने के लिए,वही आज उसकी राहों से दूर कहीं चली जाती है।।
कभी हँसते हुए जो नजरों से पढ़ लेती थी बातें उसकी,आज उन्हीं नजरों को देख कुछ और कह जाती है।।
नाकामयाबी का बोझ लिए वो भी चुप रहता है,क्योंकि दिल का हाल अब उसे बताने में भी डरता है।।
शायद कभी उसका वक्त भी आएगा,जब वही स्त्री उसकी जीत पर इतराएगी।।