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26 Aug 2024 · 4 min read

नाइजीरिया

नाइजीरिया की संस्कृति

यहाँ रहते पच्चीस वर्ष हो गए हैं, और जब लोग मुझसे कहते हैं कि मैं इस राष्ट्र की संस्कृति के बारे में लिखूँ, तो मेरा पहला विचार यही होता है कि इसका इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि कुछ पढ़ूँ तभी तो लिखूँ , परन्तु ऐसा क्या है जो यूट्यूब और गूगल पर नहीं है, और मैं लिख सकूँ ?

क्यों न मैं अपनी बात अपने अनुभवों से शुरू करूँ और देखूँ कुछ निष्कर्ष निकल सकते हैं तो !!!

हम यहां 1998 में आए थे और आरम्भ में , एक राज्य की राजधानी एबीकुटा में रह रहे थे। एक शाम मैं यूँ ही सड़क पर घूम रही थी कि कुछ बच्चे मुझे देख ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे , ओईबो ओईबो ( जब आरम्भ में यूरोपीयन यहाँ आए तो यहाँ के लोगों को लगा जैसे इनकी चमड़ी उखड़ गई है और भीतर की सफ़ेद चमड़ी निकल आई है, इसलिए उन्होंने ने इन्हें ओईबो कहना शुरू किया, अर्थात् जिसकी चमड़ी नहीं है , और कभी कभी इस शब्द का प्रयोग वे हम भारतीयों के लिए भी करते हैं ), भीतर से कुछ और बच्चे भी आ गए और मुझे एकटक देखने लगे, उस पल मुझे ऐसा लगा जैसे मैं चिड़ियाघर का जानवर हूँ और यह बच्चे मुझे देखने का आनंद उठा रहे हैं ।

एक दिन हमारे आँगन में साँप निकल आया, मैंने सिक्योरिटी से कहा, कृपया सारी घास साफ़ कर दो , ताकि साँप छुप न सके, तो उसने बड़े आश्चर्य से मुझे देखा और कहा, “ मैडम आप घबरा रही हैं , आप तो भारतीय हैं चाहें तो साँप को खूबसूरत लड़की में परिवर्तित कर सकती हैं ।” हिंदी फ़िल्मों का इतना आकर्षण था तब कि लोग हमें सड़क पर रोककर पूछते थे , आप अमिताभ बच्चन से मिली हैं, धर्मेंद्र को जानती है ?

भ्रष्टाचार इतना अधिक था कि बैंक रातोंरात बंद हो जाते थे, कई लोग अंडरग्राउंड हो जाते थे , हर जगह रिश्वत का बोलबाला था, शिक्षा के नाम पर बस कुछ अंतरराष्ट्रीय स्कूल थे । दरअसल यह राष्ट्र भी अंग्रेजों का उपनिवेश रहा है, और बाक़ी सब जगहों की तरह अंग्रेजों ने यहाँ की जीवन पद्धति को कुचला है। उनके जाने के बाद यहाँ तेल मिला और अचानक आ गए धन और स्वतंत्रता को यहाँ के नेताओं ने ऐशो-आराम में लगा दिया । धन लगातार यहाँ से बाहर के देशों में जा रहा है । आरम्भ में जब तेल मिला तो शिक्षा का स्तर अच्छा था, गाँव गाँव में भारतीय अध्यापक थे , परन्तु जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था खोखली होती गई शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर भी जाता रहा । यह अफ़्रीका में सबसे बड़ी जनसंख्या का देश है और प्राकृतिक संपदा में विश्व के संपन्न देशों में से एक है, परन्तु भ्रष्टाचार के कारण नब्बे प्रतिशत लोग अशिक्षित हैं और ग़रीबी की सीमा रेखा से नीचे है ।

प्रश्न उठता है कि विश्व में भ्रष्टाचार इतना क्यों है ? क्या हम देख नहीं सकते कि समाज के हित में ही व्यक्ति का हित निहित है? परन्तु आज के पूंजीवाद के दृष्टिकोण ने हम सब की सोच को संकीर्ण कर दिया है, व्यक्तिगत आर्थिक उन्नति के सिवा हमें कोई जीवन दर्शन याद नहीं ।

यहाँ पर स्त्रियाँ आपको हर जगह काम करती दिखाई देंगी , परन्तु परिवार में वे अभी भी पुरूष के बराबर नहीं हैं , और शायद इसलिए पारिवारिक ढाँचा बहुत शिथिल है, और समाज भ्रष्ट ।

इतने वर्षों में हमने कभी इनकी भाषा सीखने का प्रयास नहीं किया, आवश्यकता ही नहीं पड़ी, अंग्रेज़ी से काम चल जाता है । इनके लेखक भी अंग्रेज़ी में लिखकर दुनिया को अपनी कहानियाँ सुना रहे हैं । भाषा से इस तरह विच्छेदित होकर कोई भी देश कैसे अपनी पहचान बना सकता है ?

1500 वर्ष ईसा पूर्व यहाँ पर संपन्न सभ्यता थी, जिसे नोक सभ्यता के नाम से जाना जाता है, परन्तु अब मात्र उसके अवशेष उपलब्ध है। इनके अपने मिथक, त्यौहार, परम्परागत औषधि विज्ञान, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य कला आदि अपना स्थान रखते हैं, परन्तु देश ईसाईयत और मुस्लिम धर्म में ही मुख्यतः बँटा है। जब हम आए थे यहाँ सब धर्मों के लोग मिल-जुलकर प्रायः शांति से रहते थे, परन्तु पूरी दुनिया में फैल रही नफ़रत और अविश्वास की हवायें यहाँ भी पहुँच रही हैं , और हिंसा बढ़ रही है।

यूरोपियन देश 400 वर्ष तक अफ़्रीका में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करते रहे , परन्तु मलेरिया के कारण असफल रहे , जिस दिन कुनैन का अविष्कार हुआ, उस दिन से अफ़्रीका की पराजय की गाथा भी आरम्भ हो गई ।

मैं जानती हूँ यह निबंध मैंने बहुत बिखरा बिखरा सा लिखा है, पर क्या किसी भी राष्ट्र की संस्कृति को इतनी आसानी से समेटा जा सकता है?

इंटरनेट ने यहाँ के नगरों के युवकों को कुछ हद तक सबल बनाया है। परन्तु ए.आय आने के बाद इस देश में बड़े हो रहे अशिक्षित बच्चों का भविष्य क्या होगा, यह चिंता का विषय है ।

संस्कृति बनती है शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार , अर्थव्यवस्था से , और आज नाइजीरिया इन सब में पिछड़ा है। अर्थव्यवस्था पहले से बेहतर है और उम्मीद करते हैं उसके साथ साथ धीरे-धीरे एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा, जो अपनी भाषा और परंपराओं का सम्मान करेगा ।

—- शशि महाजन

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