नहीं हूँ देवता पर पाँव की ठोकर नहीं बनता
ग़ज़ल
नहीं हूँ देवता पर पाँव की ठोकर नहीं बनता
मैं संग-ए-मील हूँ मैं राह का पत्थर नहीं बनता
मुझे ही मारना मरना मुझे ही खेल में तेरे
ले मैं गोटी नहीं बनता कोई चौसर नहीं बनता
मुहाफ़िज़ हूँ अदब का मैं अदब से पेश आता हूँ
किसी की तालियों के वास्ते जोकर नहीं बनता
हमारा क़द भी शामिल है बड़ा तुझको बनाने में
नहीं तो क़द से तेरे तू कभी बढ़कर नहीं बनता
ज़रूरी है अगर नर्मी तो कुछ सख़्ती ज़रूरी भी
मिलावट के बिना सोने से भी ज़ेवर नहीं बनता
लहू सबका ही हिंदुस्तान की रग-रग में बहता है
अगर मिलती नहीं नदियाँ तो ये सागर नहीं बनता
दिलों में प्यार की ख़ुशबू महकना भी ज़रूरी है
‘अनीस’ ईंट और पत्थर से तो ये घर, घर नहीं बनता
– – अनीस शाह ‘अनीस ‘