नहीं हुआ स्पर्श धूप का
गीत
नहीं हुआ स्पर्श धूप का ,
मेरे घर और आंगन में ।
किया न चुंबन रवि किरणों ने ,
झड़ती इन पंखुड़ियों का ।
अज़ब निराशा में है, जीवन,
नव-कोमल इन कलियों का ।
पत्ते नहीं खरकते हैं , अब
इस घर के वातायन में ।
कंटक भी अब त्याग दिए हैं ,
पूर्ण हताश़ा में , बबूल ने ।
नष्ट किया आनंद फूल का ,
किसी चूक ने, किसी भूल ने ।
कौन करे ? अब फल की आशा,
उजड़े-उजड़े-से ग़ुलश़न में ।
शेष नहीं अब कोई आशा ,
नव-तरुओं के हंसने की ।
चिंतित और दुखित है जंगल,
उसे फ़िक्र है कटने की ।
कौन रखेगा? प्रेम-पुष्प अब,
मानवता के दामन में ।
नहीं हुआ स्पर्श धूप का ,
मेरे घर और आंगन में ।
ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवं शिक्षक ।