नहीं लगता कहीं अब मन….
पड़ी हूँ अनमनी कबसे, नहीं लगता कहीं अब मन
मगर बस याद ये तेरी , नहीं छोड़े कभी दामन
नयन में ख्वाब हैं तेरे, रिदय में ख्याल तेरा है
उमड़ते घन गमों के जब, बरस जाता छलक सावन
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
पड़ी हूँ अनमनी कबसे, नहीं लगता कहीं अब मन
मगर बस याद ये तेरी , नहीं छोड़े कभी दामन
नयन में ख्वाब हैं तेरे, रिदय में ख्याल तेरा है
उमड़ते घन गमों के जब, बरस जाता छलक सावन
– © सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद