नहीं रहे ‘आर्य सुमंत’ चन्द्रशेखर
कोरोना काल में एक ओर फ़िल्मी नगीना हमसे छीन गया है। 16 जून 2021 ई. को अभिनेता, निर्माता व निर्देशक चन्द्रशेखर जी, 98 वर्ष की आयु में हमसे विदा हो गए। आपका जन्म 7 जुलाई 1923 ई. को नवाबों के शहर हैदराबाद में हुआ था। छोटी-बड़ी भूमिकायें निभाते हुए चंद्रशेखर जी ने 50 के दशक से लेकर 90 के दशक तक लगभग 250 फिल्मों में काम किया।
गत वर्ष 2020 ई. में जिन्होंने ‘रामायण’ सीरियल देखा था, उन्होंने अवश्य ही चंद्रशेखर जी की भूमिका को भी देखा होगा। जी हाँ, रामानंद सागर के विश्वप्रसिद्ध टी.वी. धारावाहिक “रामायण” में दशरथ के प्रधानमंत्री और सारथी के किरदार ‘आर्य सुमंत’ को कौन भूल सकता है। महान अभिनेता चन्द्रशेखर की छोटे परदे पर यह सबसे लोकप्रिय, यादगार भूमिका थी। जिसे उन्होंने 65 साल की उम्र में अन्जाम दिया था।
आइये ज़िक्र करें उनके शुरूआती दौर से जब उनका फिल्मी संघर्ष आरम्भ हुआ। चंद्रशेखर जी के पिता सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे। चंद्रशेखर के बालपन में ही उनकी माताश्री का निधन हो गया था। अतः इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली। इनकी सौतेली मां इनसे छोटी थी। 1940 में वह अपनी दादी के साथ बैंगलोर चले गए। चंद्रशेखर को आर्थिक तंगी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था। एक वक्त ऐसा भी आया जब इन्होंने चौकीदार का भी काम किया। साल 1942 में महात्मा गाँधी जी के आवाहन पर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का हिस्सा बने। जीवन में कई धक्के खाते-सहते हुए भी चन्द्रशेखर के मन में सिनेमा के प्रति एक अनुराग बना रहा। उनके हृदय में अभिनय का बीज अंकुरित होने लगा था। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के बाद वह जब घर लौटे तो उन्होंने ‘राम गोपाल मिल्स’ में काम किया। इसके बाद अपनी दिली बात दोस्तों को बताने पर उनके दोस्तों द्वारा ही प्रोत्साहित करने पर वे किस्मत आजमाने मुंबई आ गए। उस वक्त इनकी जेब में मात्र चालीस रुपए थे। काफ़ी वक्त तक उन्होंने स्टूडियो के अंदर-बाहर चक्कर काटे और अन्ततः एक पार्टी सीन में छोटा सा रोल मिल गया। तो उनकी उम्मीद जगी।
अतः चन्द्रशेखर जी ने पच्चीस वर्ष की उम्र में यानि सन 1948 ई. में पुणे में शालीमार स्टूडियो में अपनी नौकरी प्राप्त की, मशहूर पार्श्व गायिका शमशाद बेगम की सिफारिश पर। नौकरी के दो वर्ष बाद उन्होंने अपना फ़िल्मी डेब्यू किया, ‘बेबास’ (1950 ई.) में, एक जूनियर आर्टिस्ट रोल के माध्यम से, इस फ़िल्म में अभिनेता भारत भूषण जी के साथ उन्होंने मुख्य चरित्र निभाया था। उन्होंने शुरुआती संघर्ष के दिनों में फ़िल्म निर्दोशी (1951 ई.), दाग (1952 ई.), फार्मियाश (1953 ई.), मीनार (1954 ई.) जैसी फिल्मों में जूनियर कलाकार की भूमिका निभाई। 1954 की फिल्म “औरत तेरी यही कहानी’ में अभिनेता के रूप में उनकी उपस्थिति भी हुई।
वैसे मुख्य नायक के रूप में उनकी पहली फिल्म ‘सुरंग’ (1953 ई.) थी, जिसका निर्माण व्ही. शांताराम द्वारा किया गया। इसके बाद उनके कुछ अन्य महत्वपूर्ण किरदार:— कवि और मस्ताना (1954 ई.), बारादरी (1955 ई.), बसंत बहार (1956 ई.), गेटवे ऑफ़ इंडिया (1957 ई.), फैशन (1957 ई.), काली टोपी लाल रुमाल (1959), बरसात की रात (1960 ई.), बात एक रात की (1960 ई.), अंगुलीमाल (1960 ई.), किंग काँग (1962 ई.), रुस्तम-ए-बगदाद (1963 ई.), और जहान आरा (1964 ई.) जैसी फिल्मों में किये। जिनसे उनकी मुकम्मल पहचान दर्शकों के मध्य बनी।
अतः चन्द्रशेखर जी ने सन 1964 ई. में कुछ नया करने हेतु तय किया कि अब तक कि पहचान का लाभ उन्हें उठाना चाहिए अतः अब उन्हें खुद की मूवी में मुख्य नायक की भूमिका निभानी चाहिए तो उन्होंने अपनी हिट संगीत फिल्म ‘चा चा चा’ (1964 ई.) में न केवल अभिनय किया बल्कि इसका निर्माण व निर्देशन भी किया। यह अभिनेत्री हेलेन की भी मुख्य भूमिका के रूप में पहली फिल्म थी। ‘चा चा चा’ लेखक अविजित घोष की पुस्तक ’40 रीटेक्स’ में प्रदर्शित फिल्मों में से एक है, यहाँ बॉलीवुड क्लासिक्स आपको याद आ सकती है। सन 1966 में, उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म ‘स्ट्रीट सिंगर’ का निर्देशन और निर्माण किया। यह फ़िल्म नहीं चली। सन 1968 के बाद क़ाफी कुछ बदल चुका था, चंद्रशेकर को अग्रणी भूमिका में अभिनय करने का प्रस्ताव नहीं मिल रहे थे, और बाद में वे चरित्र की भूमिकाओं में बदल गए । वह सुप्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक शक्ति सामन्त के निर्देशकीय उद्यमों में नियमित चरित्र अभिनेता बनके रह गए और मुख्य नायक राजेश खन्ना के साथ चरित्र अभिनेता के रूप में कई फिल्मों में जैसे—’कटी पतंग’, ‘अजनबी’, ‘महबूबा’, ‘अलग-अलग’ आदि फिल्मों के साथ बने रहे।
अभिनेता चंद्रशेखर ने 50 साल की उम्र में गुलज़ार के साथ सहायक निर्देशक के रूप में जुड़ने का फैसला किया और सन 1972 ई. से 1975 ई. के मध्य परिचय (1972 ई.), कोशिश (1972 ई.), अचानक (1972 ई.), आँधी (1975 ई.), खुशबू (1975 ई.) और मौसम (1975 ई.) जैसी सभी यादगार फिल्मों में गुलज़ार साहब की बखूबी मदद की, इन्हें क्लासिक सिनेमा बनाने में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। सन 1971 से 1987 के मध्य उन्होंने जिन फ़िल्मों में चरित्र भूमिकायें निभाई वो इस प्रकार हैं:— “हम, तुम और वो”, “धर्मा”, “गहरी चाल”, “चरित्रहीन”, “वरदान”, “रंगा खुश”, “शक्ति”, “शंकर दादा”, “अनपढ़”, “साजन बिना सुहागन”, “कर्मयोगी”, “दि बर्निंग ट्रैन”, “नमक हलाल”, “निकाह”, “अयाश”, “मान गए उस्ताद”, “डिस्को डंसर”, “शराबी”, “संसार”, “हुकूमत” आदि।
ख़ैर, जो मृत्युलोक में आया है उसने एक दिन जाना भी है। यही सार्वभौमिक अटल सत्य भी है। भगवान चन्द्रशेखर जी की आत्मा को शान्ति दे।
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