नहीं मिला इंसान यहां।
बेहद दुखी मन से एक मुक्तक।
खुद को खुदा समझता कोई, और कोई भगवान् यहाँ।
इंसानों ने आज भुला दी, इंसानी पहचान यहाँ।
कांधे लाश उठाये माँझी, आठ मील तक चला गया।
लाखों लोग मिले उसको पर, नहीं मिला इंसान यहाँ।।
प्रदीप कुमार
बेहद दुखी मन से एक मुक्तक।
खुद को खुदा समझता कोई, और कोई भगवान् यहाँ।
इंसानों ने आज भुला दी, इंसानी पहचान यहाँ।
कांधे लाश उठाये माँझी, आठ मील तक चला गया।
लाखों लोग मिले उसको पर, नहीं मिला इंसान यहाँ।।
प्रदीप कुमार