#नहीं बदलती तासीर मिट्टी की
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★ #नहीं बदलती तासीर मिट्टी की ★
कुत्तों की अलग बस्तियाँ नहीं होतीं
वो इन्सानों के बीच पाए जाते हैं
आबादी बढ़ जाए इनकी या हो जाएँ बावले
मारे जाते हैं कभी भगाए जाते हैं
रवायतों-मुहब्बतों पे छा गया
यूँ इबादतों का रंग
अपने हाथ अपनी ही
गर्दन को आए जाते हैं
पूरब में उगा एक नया सितारा
आसीन विराथू
फसलों की बेहतरी को शुरु से यहाँ
झाड़-झँखाड़ उखाड़े जलाए जाते हैं
नाम बदलने से नहीं बदलती
तासीर मिट्टी की
यार की उल्फत में यहाँ
टैंकों के कब्रिस्तान बनाए जाते हैं
काबिले फख्ऱ है सतीश धवन का वो चेला
अबुल पैकर जैनुलआबदीन अब्दुल कलाम यारो !
सुनहरी यादें अध्याय अट्ठारहवाँ
श्लोक गुनगुनाए-गाए जाते हैं
रोशनी का दुश्मन खिलाफती वो बूढ़ा
दिलों में नहीं दलों में बाकी है
पूछ कंधार से ले के मेरे बाप का नाम जहाँ
आज भी रोते बच्चे चुप कराए जाते हैं
आ फिर दिखाऊँ मैं तुझको
सारागढ़ी का खेल
कसम है दशमेश की
चिड़ियों से यहाँ बाज तुड़वाए जाते हैं
हाँ, मैं हिन्दु हूँ और
हिन्दुस्थान मेरे बाप का है
यूँ ही तो चार-चार बेटे नहीं
कटवाए जाते हैं . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२