#नहीं देखा#
शीशे सा पिघलता हुआ पत्थर नहीं देखा,
हर लम्हा बदलता हुआ मंज़र नहीं देखा,
हर सख्स पढ़ लेता है मेरी रुख की लकीरें,
मेरे दिल में क्या है किसी ने अंदर नहीं देखा।।
शीशे सा पिघलता हुआ पत्थर नहीं देखा,
हर लम्हा बदलता हुआ मंज़र नहीं देखा,
हर सख्स पढ़ लेता है मेरी रुख की लकीरें,
मेरे दिल में क्या है किसी ने अंदर नहीं देखा।।