नहीं जगाना चाह….
अन्तर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस (26 जून) प्रसंग पर
(तीन कुण्डलिया छंद)
(1)
करता नाशी चित्त की,नशा सुनिश्चित मीत।
बीड़ी अरु सिगरेट से,कभी न करना प्रीत।।
कभी न करना प्रीत,और मत खाना गुटखा।
छूना नहीं शराब,न रखना जीवन भटका।।
कह सतीश कविराय, मरे बिनु जीवन मरता।
हों उसका कुल नाश,नशा जो हरदम करता।।
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(2)
पीना प्रिय! मत भूलकर,गाँजा-चरस व भंग।
जीवन में चाहो अगर,नित खुशियों के रंग।।
नित खुशियों के रंग,नशा पल में हर देता।
जीवन निज बर्बाद,क्षणिक में जो कर देता।।
कह सतीश कविराय,करे जो अंतर झीना।
गाँजा-चरस व भंग,भूलकर भी मत पीना।।
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(3)
नहीं जगाना ड्रग्स की,अपने मन में चाह।
वरना जीवन की स्वयं,भटकोगे तुम राह।।
भटकोगे तुम राह,अमन खो दोगे अपना।
होगा चकनाचूर,क्षणिक में उर का सपना।।
कह सतीश कविराय,अगर मंज़िल तक जाना।
अपने मन में चाह,ड्रग्स की नहीं जगाना।।
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)