नहीं चली रेल, सरकार है साली फेल
नेताजी ने कहा -अरे अज्ञानीयों, महामूर्खों, अंधभक्तों,बेवकुफों हम रेल नहीं चलायेंगे
तुम्हारे बाप भी हमारा कुछ नहीं कर पायेंगे
सारे के सारे हमारे पांव में गिर जायेंगे
गिड़गिड़ायेंग
बार-बार रो -रो कर अपना दुःख सुनायेंगे
हम तो बहुत मुस्कुरायेंगे
आनंद से भर जायेंगे
तुमने हमको चुना है तो हम उल्टी गंगा बहायेंगे
तुम लोगों ने क्या सोचा? तुम्हारी आंखों के आंसू से हम पिघल जायेंगे
तुम्हारी आंखों में अभी खून के आंसू भी लायेंगे
देखना तुम्हारे सारे ख्वाब जीते जी ही मर जायेंगे
आंदोलनकारियों को सीधे जेल में भिजवायेंगे
धरना, प्रदर्शन,सभा, अनशन को भी यहां से हटवायेंगे
विकास तो नाटक है पगलों विनाश का तांडव हम मचायेंगे
पैसे, कम्बल, साड़ी,दारु में बिकते हो ना इस बार तुम्हारा डेरा ही बिकवायेंगे
जनता बोली -इतना अभिमान,किस गुमान में हैं श्रीमान अब आप नहीं हम समाझायेंगे
बहुत किया है प्यार तुमसे, तुम्हारे नखरे और नहीं उठायेंगे
जरा ठहरो तुम्हें आसमान से जमीन पर लायेंगे
तुम्हारी असली औकात तुम्हें याद दिलायेंगे
तुमको दिन में तारे दिखायेंगे
पांच साल बाद चुनाव फिर आयेंगे
तुम्हारे खिले चेहरे फिर से मुरझायेंगे
आना वोट मांगने दरवाजे पर कुत्ते की तरह भगायेंगे
तुमको ही धोबी का कुत्ता बनायेंगे
तुम्हारी सभा में काले झंडे लहराते लहरायेंगे
छट्ठी का दूध क्या होता है ये बतायेंगे
फिर भी दम नहीं भरेंगे, तुम्हारे जैसे ही सतायेंगे
अब देखना तुम्हारे होश हम ठिकाने लगायेंगे
अबकी चुनाव में ऐसी धूल चटायेंगे
कि तुम तो छोड़ो तुम्हारे बाप भी सीधे हो जायेंगे
चुनाव में तुमको नहीं किन्नर को खड़ा करवायेंगे
और उसको ही जीतवायेंगे
आक्रोश की क़लम से आग उगलती कविता
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.