नहीं किसी का भक्त हूँ भाई
नहीं किसी का भक्त हूँ भाई
पंथों में ना सख़्त हूँ भाई, अंधा कोई भक्त हूँ भाई।
मैं करता हूँ खुद की पूजा, मेरा ईश्वर मैं ना दुजा।
जन्म से खुद को हिन्दू पाऊँपड़े जरूरत सिख बन जाऊँ।
कभी जरूरत मुस्लिम भो हूँ, कभी बनूँ मैं मैौद्ध ईसाई।
क्योंकि मैं अनासक्त हूँ भाई, नहीं पंथ का भक्त हूँ भाई।
पंथ ज्ञान के रस्ते सारे, तो सब के सब हुए हमारे।
गणित कभी बायो पढ़ता हूँ, पुस्तक से खुद को गढ़ता हूँ।
पर इनकी ना करता पूजा, पड़े जरूरत पढ़ता दुजा।
निजप्रज्ञा अभिवर्धन राही, ज्ञानासक्त हरवक्त भाई?
नहीं किसी का भक्त हूँ भाई।
मेरा तन हीं मेरा धन हैं, तनमन अर्पित हीं निज मन है।
मैं हूँ तो ये पंथ है सारे, देश धर्म भी बने हमारे।
मुझसे हीं ये सब फलते हैं, खुद में हीं अनुरक्त हूँ भाई।
नहीं किसी का भक्त हूँ भाई, पंथों में ना सख़्त हूँ भाई।
अजय अमिताभ सुमन