नहीं ! एक झुमली और नहीं !!
नहीं ! एक झुमली और नहीं !!
” झुमली मर गई! आत्म हत्या की है”
यह समाचार सबकी ज़ुबान पर था जिन्होने देखा था और उनकी भी जिन्होने केवल सुना भर था उनकी भी। झुमली एक चिट्ठी लिखकर छोड़ गई थी! लोगों की प्रतिक्रिया कुछ इस तरह रही!
“जनम से ही अभागी रही”
“बेचारी ग़रीब औरत और करती भी क्या?”
“जन्म लेती ही मर जाती तो सही होता”
“जैसा बोओगे वैसा काटोगे”
“ग़लती किसी और की और भुगतना बेचारी को पडा”
“असली गुनाहगार का तो पता ही नहीं”
जितने मुँह उतनी बातें! गाँव भर में झुमली की मौत की चर्चा फैल गई थी।
“मम्मी! आत्महत्या क्या होती है?” सडक छाप बच्चे ने अपनी माँ से पूछा तो बजाए जबाब के थप्पड़ मिला। गाँव में लोग ग़रीब हैं। किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटा पाते हैं। कहने को ज़मींदार हैं पर खेत इतने कम और छोटे कि साल भर का अनाज तक नहीं उगता?
झुमली की बात भी कुछ ही दिनों में आई गई हो जायेगी। अभी तो उसके म्रित शरीर को दफ़नाना है। बेमने से लोग जमा हुये और नदी किनारे झुमली को ठिकाने लगया। करते भी क्या, बदबू मार रहा था।
पोस्टमार्टम? वो क्या होता है? मौत के बाद की रश्मोरिवाज? भूल जाओ! जरूरी है कि गाँव से गंदगी फैला रहे उसके शरीर को जला दिया जाय! बाकी सब बकवास है!
गाँव के पटवारी कमल सिंह ने अपने खाते में कुछ लिखा और क़िस्सा खतम! कमल सिंह अपवाद के रूप में एक भला आदमी था। पटवारी गाँव का सर्वेसर्वा होता है, मुफ़्त की ख़ातिरदारी का शौक़ीन और गाँव वाले चाहे अनचाहे उसकी माँगे पूरी करते रहते हैं।,कमल सिंह धार्मिक प्रवर्ति का था और भगवान से डरता था। गाँव वालों की यथा शक्ति मदद करता।
ग्राम पंचायत में रखे जनम मरण रजिस्टर में सरकारी ख़ातिर कुछ लिख मारा और मामला रफ़ा दफ़ा हो गया। किसी को परवाह नहीं थी कि झुमली ने आत्महत्या क्यों की।
झुमली के पति भोलू की पाँच साल पहले म्रित्यु हो चुकी थी। कोई संतान नहीं थी। अब कोई मदद करने वाल नहीं था। अकेले ही जीना होगा। खुद ही अपने खेत खोदती, बोती, काटती! अकेले के गुज़ारे के लिए काफ़ी था। तब गाँव में वातावरण भी शांतिमय था। जिंदगी घिसट रही थी।
भोलू के नज़दीकी चचेरे भाइयों ने उसके मिट्टी के घर और खेत पर हक जताया। जब तक ज़िंदा था तो किसी ने परवाह तक नहीं की।घर की सफ़ाई में झुमली के फटे पुराने गद्दे के नीचे एक काग़ज़ हाथ लगा। पढना नहीं आता था तो काग़ज़ लेकर पटवारी के पास पहुँच गये। पटवारी ने बताया कि काग़ज़ झुमली के हाथ की लिखी चिट्ठी है।
पहली बार गाँव वालों को पता चला कि उनके बीच कोई पढ़ना लिखना जानने वाली कोई महिला रहती थी।
झुमली की चिट्ठी
पटवारी ने झुमली की चिट्ठी पढना शुरू किया। गाँव के काफ़ी लोग जमा थे।
” मेरा नाम झुमली है। सबको झुमली का प्रणाम । मैने अपनी जान खुद ली। उसके लिये कोई ज़िम्मेदार नही है। बताना जरूरी नही है कि मैने अपनी जान क्यों ली। फिर भी सुनिये। मेरी जिंदगी ही मेरी मुसीबतों का कारण है, किसी को क्या दोष दूँ!
“मुसीबत तो जनम लेते ही शुरू हो गई थी। कहते हैं कि तीन साल की थी तो माँ मर गई।बाप तो पहले ही माँ को छोड़कर ग़ायब हो गया था। कुछ जमीन के टुकड़े थे ओ गाँव के साहूकार ने क़र्ज़ न चुकाने के बदले हड़प लिये।
” अपना तो कोई था नही, गाँव की एक बुजुर्ग महिला ने रहम खाकर पाला पोशा। उसका भी कोई नहीं था। रहने की एक छोटी सी कुटिया। दूसरों के खेतों और घरों में काम करके जीवन यापन। पर मुझे कभी पता नहीं चलने दिया कि भूख प्यास क्या होती है। झुमली नाम भी उसी दादी ने रखा था। हाँ मैं उसको दादी बोलती थी। मेरे सर के बाल बेतरतीब बिखरे पड़े रहते थे सो झुमली नाम रख दिया।
” एक दिन अचानक दादी भी मर गई। मैं तब १२ साल की थी। मेरे पास जो भी आया हमेशा के लिये चला गया। पहले बाप, फिर माँ और अब दादी। इसीलिये सब अभागी बोलते रहे। गाँव के एक चाचा ने अपने पास रख लिया। उनके घर और खेत में काम करती। सब ठीक ही था।
“गाँव के लड़के लड़कियाँ स्कूल जाते और मैं उनको देखती तो मन करता कि मैं भी पढती तो कितना अच्छा होता! कांता के साथ कभी कभी कंकड़ खेलने को मिलता। उसने ही मुझे लिखना पढ़ाया सिखाया। अपनी पुरानी कापी किताब मुझे दे देती। मैंने भी मन लगाकर सीखा, सोचा जीवन में काम आयेगा और देखिये आज काम आ ही गया। हूँ न अभागन!
“एक दिन कहीं से गाँव में दो आदमी आये। चाचा से पता नहीं क्या बात हुई पर अगले दिन मुझे उनके साथ जाने को कहा और इशारे से बताया कि अबसे मुझे उस अधेड़ आदमी के साथ रहना है और वही मेरी देखभाल करेगा। मैं रोई, गिड़गिड़ाई पर मेरी किसी ने नही सुनी। दूसरे लोगों ने समझाया कि इसी में मेरी भलाई है ।चिंता मत कर , भला आदमी लगता है, सुखी रहेगी। किसी किसी की आँख में तो आंशू भी थे। जिस गाँव में जन्मी, पली, बडी हुई उसी ने मुझे एक अजनबी के हाथ में थमा दिया।लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है?
” देर रात अंधेरे में एक गाँव में पहुँचे। दूसरा आदमी बीच में ही कहीं दूसरी तरफ चला गया था। रात को एक कमरे में सो गये। सुबह कहा कि गांव के कुयें से बाल्टी भर पानी ले आऊँ। कुयें का रास्ता इशारे से बताया। रास्ते में गांव की कुछ महिलाओं ने देखा पर कहा कुछ नहीं। उनकी फुसफुसाहट से समझ में आया कि उस आदमी का नाम भोला था। एक दो दिन में यह भी पता चल गया कि मैं उसकी पत्नी हूँ । इससे पहले भी दो और औरतों को लाया था पर टिकी कोई नहीं। उनके हाव भाव से लगता कि मैं भी क्या ही टिकूँगी।
“भोला गरम मिज़ाज का आदमी था। छोटी छोटी बातों पर लड़ने मरने को तैयार। गाँव में किसी से बोलचाल नहीं। सबसे कई बार लड़ चुका था। कोई उसके मुँह नहीं लगना चाहता । थोड़ी बहुत खेती की जमीन और गांव से बाहर मज़दूरी करके जीवन बसर होता। पर मेरे साथ उसका व्यवहार ठीक था। गाँव वालों से भी कोई शिकायत नहीं। दो साल बाद भोला ने मुझसे शादी करने की इच्छा ज़ाहिर की और मैं राज़ी हो गई। अब तक उसने मुझे छुआ तक न था। गाँव के मंदिर में गाँव के कुछ लोगों के सामने शादी सम्पन्न हुई। गाँव के लोग को तो बुलाया भी नहीं था पर शायद उत्सुक्ता वस जमा हो गये थे।
“दो साल बाद भोला भी मर गया। मैंने कहा न कि मैं हूँ ही अभागन! जब भी जिंदगी में कुछ भला होने को हुआ तो क़िस्मत ने पलटी मार दी! मैं टूट चुकी थी पर फिर भी एक आश थी जीने की।मैंने अपने आप को संभाला, खेती और घरों में काम करके जीने की कोशिश में लगी रही।
” मुझे लगा कि वह आदमी मेरे नजदीक आने की कोशिश कर रहा है। उसके हाव भाव से साफ लग रहा था कि वह कुछ चाहता है। महीनों निकल गये मैं उससे दूरी बनाती रही। एक दिन देर शाम अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी थी। चुपके से आकर पास मे बैठ गया। कहने लगा मैने जबसे तुमको देखा चाहने लगा था पर फिर भोला ने तुमसे शादी कर ली।मैं गाँव से बाहर चला गया। जब सुना कि भोला नही रहा तो दुख हुआ तुम्हारे बारे में सोचकर कि तुम्हारा क्या होगा। झुमली मैं तुमसे प्यार करता हूँ, मुझसे शादी करोगी? सोचकर बताना, जल्दी नहीं है। मैं इंतज़ार करुंगा।
” मैंने जिंदगी में पहली बार अपने लिये किसी के मुँह से प्यार शब्द सुना था! रात भर सो वहीं पाई। कई दिन निकल गये इस उधेड़ बुन में कि हाँ कहूँ या ना। सपनों मे भी प्यार शब्द गूँजता। अब मैं उसको मिलने को उत्सुक दिखने लगी। उसके मुँह से वही प्यार शब्द सुनने को आतुर!
” फिर हमने लुके छिपे मिलना शुरू किया। बहुत ही दयालु और मन बहलाने वाला इंसान। हम शादी करने के लिये राज़ी हुये और उसने कहा कि दो चार महीने मे शुभदिन पर मंदिर में गाँव वालों के सामने रश्म निभायेंगे। मैं सातवें आसमान पर! सोचा मेरा भाग्य बदलने वाला है! चोरी छिपे मिलते रहे और कब कैसे कौन सी बुरी घड़ी में अपना संयम खो बैठी। पर लगा कोई बात नहीं, शादी तो होनी ही है। दो महीने बाद पता चला कि गर्भ से हूँ। बहुत खुश हुई। रात को उसको बताया और उसने कहा कि जल्द ही पंडित से पूछकर शुभ मुहूर्त में शादी कर लेंगे।
“अगले दिन से उसने मुझसे दूरी रखना शुरू कर दिया। मेरी झोपड़ी में नही आता। कभी टकरा जाता तो ऐसे दिखाता जैसे जानता तक न हो। मैं टूट चुकी थी। समय निकल रहा था। एक दिन सुनसान जगह पर दिखा तो साफ कह दिया कि सबको बता दुंगी। जैसा डर था वही हुआ , साफ मुकर गया कि बच्चा उसका है ही नही। मैं कैसे और क्या करती, मेरी सुनता कौन?
” मैं चाहती तो कम से कम उसे बदनाम तो कर ही सकती थी, मेरा क्या मैं तो हूँ ही अभागी! पर फिर सोचा वही तो एक है जिसने मुझे प्यार किया। उसका कैसे बुरा सोच सकती हूँ? मैं तो शापित हूँ ही!
” कैसे एक बच्चे को जनम दूँ और बता भी न सकूँ कि उसका बाप कौन है? कैसे एक और शापित को जनम दूँ। अगर लड़की हुई तो एक और झुमली? नहीं ! एक और झुमली नहीं! इसको मेरे साथ ही मरना होगा।”
गाँव वाले असमंजस में कि कौन हो सकता है! है तो उनमें से ही कोई!!!