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9 Feb 2018 · 1 min read

नहाकर ओस में सिमटी

नहाकर ओस में सिमटी, मुझे कर याद शरमाई,
चुनर झीनी कुहासे की, निखर कुछ धूप से आई ।
सुनहरे केश प्रियतम के, अधर लाली दिवाकर की ।
सुबह अभिसार के क्षण को, छुपा दिल में चली आई ।

दीपक चौबे ‘अंजान’

Language: Hindi
178 Views
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