नहाकर ओस में सिमटी
नहाकर ओस में सिमटी, मुझे कर याद शरमाई,
चुनर झीनी कुहासे की, निखर कुछ धूप से आई ।
सुनहरे केश प्रियतम के, अधर लाली दिवाकर की ।
सुबह अभिसार के क्षण को, छुपा दिल में चली आई ।
दीपक चौबे ‘अंजान’
नहाकर ओस में सिमटी, मुझे कर याद शरमाई,
चुनर झीनी कुहासे की, निखर कुछ धूप से आई ।
सुनहरे केश प्रियतम के, अधर लाली दिवाकर की ।
सुबह अभिसार के क्षण को, छुपा दिल में चली आई ।
दीपक चौबे ‘अंजान’