नसीब
सुनने में लगती हमें, सचमुच बात अजीब !
बने न जिसका काम वह, कोसे बैठ नसीब !!
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गढ़ता है समभाव से , सारे कलश कुम्हार !
बनते मगर नसीब से, …सही आठ मे चार! !
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लाते हैं परिवार मे,,अपना सभी नसीब!
कोई हो जाए धनी, …..कोई रहे गरीब! !
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मकड़ी सी कारीगरी,.. बगुले सी तरकीब !
दुनिया मे होती नही,सबको सहज नसीब!!
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पडे पौष की ठंड या,…..रहे जेठ का घाम!
किस्मत में मजदूर की,लिखा कहाँ आराम! !
रमेश शर्मा