नसबंदी
यह घटना उन दिनों की है जब मैं इंटर्नशिप कर रहा था और मेरी तैनाती स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में थी । उस दिन मैं ऑपरेशन थिएटर में खामोशी से एक अछूत की तरह अलग खड़ा था ।मुझे यहां का अपना पहला सबक पता था कि मुझे यहां की किसी भी चीज को नहीं छूना है । मैं ओ टी ( ऑपरेशन थिअटर ) टेबल से दूर एक कोने में महत्वहीन गम्भीरता लादे खड़ा होकर शून्य में निहारते हुए अपनी ड्यूटी का समय काट रहा था । उस दिन वह ऑपरेशन किसी मरीज़ा की बच्चेदानी में स्थित गदूद को निकाले जाने का था , तभी मैंने पाया कि ऑपरेशन टेबल के आसपास सुगबुगाहट एवं हलचल बढ़ गई है । कुछ ध्यान देने पर मुझे पता चला कि उसका पेट खोलने पर उसकी बच्चेदानी में गदूद की बजाए गर्भस्थ शिशु निकला था । यह बात उन दिनों की है जब अल्ट्रासाउंड मशीन आज की तरह आसानी से सभी जगह उपलब्ध नहीं हुआ करती थी । मैंने देखा हमारी प्रधान सर्जन ऑपरेशन रोककर अपनी गर्दन उचका कर चारों ओर कुछ ढूंढने के लिए देखने लगी और फिर बाकी टीम की अन्य सदस्या भी उन्हीं की तरह कुछ तलाशने का प्रयास करने लगीं । उस समय सर्जन से लेकर नर्स , वार्ड ब्वाय , स्वीपर तक सभी व्यस्त थे अतः मुझे खाली खड़ा देखकर इशारे से ओ टी टेबल के पास बुलाया गया और उन्होंने मुझसे कहा कि इस मरीज की बी एच टी ले जाओ और ऑपरेशन थिएटर के बाहर इसका पति खड़ा होगा उससे इसकी नसबंदी की सहमति के लिए हस्ताक्षर ले आओ । मैं फुर्ती से इस कार्य को करने के लिए ओ टी से बाहर चला गया और गलियारा पार कर बाहर हॉल में खड़े उसके कुछ रिश्तेदारों में से उसके पति का नाम लेकर उसके पति को अपने पास बुलाया । वह मुझे मास्क पहने देख प्रभावित हो कर नतमस्तक हो गया । मैंने उससे कहा कि आपकी पत्नी का एक नसबंदी का ऑपरेशन इसी ऑपरेशन के साथ और होना है आप यहां इस कागज पर अपनी सहमति के लिए हस्ताक्षर कर दीजिए । वह एक बहुत ही भोला भाला सा ग्रामीण व्यक्ति था उसने पूरे करुणा भरे आर्त्तनाद स्वरों में मुझसे कहा
‘ डॉक्टर साहब बेचारी पर एक ऑपरेशन और कर के उसे अधिक परेशान मत करो , मैं उसकी नसबंदी करा के क्या करूं गा जबकि मेरी खुद की नसबंदी हो चुकी है । ‘
उसकी यह बात सुनकर मैं दुगनी फुर्ती से वापस ओ टी में आ गया और बहुत जिम्मेदारी वाले भाव से यह खबर सबको दे दी । तत्पश्चात मेरी जान जानकारी के अनुसार सम्भवतः सर्जन साहिबा ने दल के सभी सदस्यों को गोपनीयता बरतने की शपथ दिला कर उसकी नसबंदी कर दी । उस समय उसके भोले भाले अनपढ़ पति को यह समझाना ज्यादा कठिन था कि एक बार नसबंदी हो जाने के बाद भी उसकी नसबंदी फेल हो सकती है और गर्भ ठहर सकता है । । हम सबके लिए शायद उसे यह समझाना और भी कठिन था कि नसबंदी उसने अपनी ही तो कराई है , पूरे गांव वालों की तो नहीं !
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इसी प्रकार एक बार एक महिला ओपीडी में आई और बोली मेरी नसबंदी हो चुकी है पर मुझे अब अपनी बन्द नस खुलवानी है ।
इस पर जब सर्जन साहिबा ने उससे पूछा कि पहले कराई ही क्यों थी ?
तो वह बोली हमारे मर्द हमें छोड़ कर बाहर चले गए थे ।
फिर सर्जन साहिबा ने पूछा
‘ तो फिर अब क्यों इसे जुड़वाना चाहती हो ? ‘
तो वह खुश हो कर बोली
‘ अब मेरे मरद फिर से घर लौट आए हैं ! ‘
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एक बार अस्पताल के प्रांगण में चिकित्सा अधिकारियों एवं प्रशासन के तहसीलदार , पटवारियों आदि के बीच में उच्च स्वरों में कुछ बातचीत या मौखिक झगड़ा चल रहा था दूर से बात समझ में नहीं आने पर कौतूहल वश मैं भी वहां चला गया । मैंने देखा कि दोनों झगड़ा करते दलों के बीच में एक कृष काय वृद्ध पुरुष खड़ा था उसके पिचके गाल मुंह में दांत ना होने के कारण और भी अधिक पोपले और पिचके हुए थे और उसकी आंखें कोटर में धसीं थी । वह अपने दोनों हाथ अपनी पैंट की जेब के अंदर डाले सर झुका , उसे लेकर होने वाले झगड़े से बेखबर हम सबके बीच में शांत भाव से खड़ा था । उन दोनों दलों चिकित्सा अधिकारियों एवं प्रशासन के लोगों की बहस सुनने के बाद मुझे पता चला कि उस बुड्ढे को नसबंदी के लिए चिकित्सा अधिकारी ने मना कर दिया गया है जबकि प्रशासन के लोग बड़ी मुश्किल से उसे फांस के लाए थे और उसकी नसबंदी कराने पर तुले थे ।
इससे पहले कि कुछ और गहमागहमी बढ़ती तभी उस बुड्ढे ने एक झटके से अपनी गर्दन ऊंची की और सामने खड़े पटवारी को अपने एक हाथ से हल्का सा झिंझोड़ कर फिर अपनी हथेली से थम्सअप की मुद्रा बनाकर अपने पोपले मुँह में अंगूठे को डालते हुए दारू का इशारा किया फिर दोनों हथेलियों को ऊपर कर दाएं बाएं हिलाते हुए अंगूठे और उंगलियों की चुटकी से सिक्का उछालने के तरीके में घुमाते हुए कुछ पैसों का इशारा किया ।
उसके इन इशारों एवं भाव भंगिमा पर हम सबको हंसी आ गई । अब हम सब समझ गए थे कि वह केवल एक गूंगा और बहरा ही नहीं एक बेवड़ा भी था , उसने पटवारी से दारू कहां है और पैसे कब मिलेंगे का इशारा किया था , तथा कुछ देर भीड़ भाड़ में अपनी शराब मिलने की बेचैनी को दबाए हम लोगों के बीच खड़ा रहने के पश्चात उसने सोचा कि शायद इस बवाल को ही नसबंदी कहते होंगे अतः अब उसकी नसबंदी हो चुकी है और इसीलिए वह अपनी दारू और पैसे की मांग पटवारी जी से कर रहा था । जिसका लालच देकर प्रशासन के लोगों द्वारा उसे नसबंदी के लिए प्रेरित किया गया था।
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इन सब में से सबसे ज्यादा निरीह एवम दया का पात्र प्राणी वह व्यक्ति था जिसने अपने आप को स्वयं से नसबंदी के लिए प्रस्तुत किया था । वह इमरजेंसी काल में गांव के पुरुषों की सामूहिक एवम सार्वजनिक नसबंदी से उत्पन्न परिस्थितियों वश गांव वालों के बहुमत का शिकार हो गया था । पूछने पर उसने रो-रो कर बिलखते हुए बताया कि डॉक्टर साहब दूर-दूर तक जब किसी गांव में किसी महिला को महीना चढ़ता है तो सबसे पहले वे सब लोग इसके लिये मुझे दोषी मान कर मुझे ही ढूंढ कर पीटने आ जाते हैं , क्योंकि इमरजेंसी काल में बाकी सब की तो नसबंदी हो चुकी है , केवल एक मैं ही उस समय अपने विवाह के लिये दूसरे गांव में लड़की पसन्द करने के लिए गया हुआ था इसके कारण बचा रह गया हूं ।
धन्नय है आम जनता पर इमरजेंसी लगा कर ऐसी अनचाही योजना लादने वाली उस सरकार को एवम उससे भी धन्नय उसका इतनी सख्ती से कार्यवन करने वाले अधिकारी । ऐसी किसी योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आम जनता को उस योजना के लाभ की आवश्यकता और महत्व का ज्ञान है कि नहीं या केवल समाज और देश हित मे वह लागू की गई है ।