नशीली मूंगफली
05• नशीली मूंगफली
लालबाबू का बेटा लल्लू और बहू थी लाली ।लाली सुबह पति का हाथ पकड़े दफ्तर के लिए ऑटोरिक्शा में बैठाने लिए जा रही थी । वह झूम रहा था, लडखडाते चल रहा था।एक बार तो पागलों की तरह सड़क के किनारे से ईंट उठा कर बीच में रख दिया ।उसे देखकर गाड़ी वाले गाड़ी किनारे से ले जाने लगे ।
ऊपर छत से लालबाबू यह सब नजारा देख रहे थे।
उन्हें शक हुआ ।बहू आई तो पूछा ।बताई कल शाम कुछ मूंगफली लाए थे, वह नशीली निकल ग्ई, उसीका असर है।लालबाबू चौंके,मूंगफली कबसे नशीली आने लगी!उन्हें लगा बहू कुछ छिपा रही है ।कुछ सख्ती के बाद पता चला वह अजीब सी नशाखोरी के लिए बनाई प्लास्टिक की मूंगफली सरीखी दिखने वाली कोई वस्तु थी ,जिसके अंदर नशीला तरल पदार्थ भरा था।लल्लू को उसकी लत लग गई थी ।नाश्ते से भी पहले प्रातः खुद ही अपने कमरे में सूई लगा लेता था।भयबस पत्नी लाली असहाय बनी हुई थी।लालबाबू सुनकर बहू को आगे चुप रहने की ताकीद कर दी इस बारे में ।
संयोग से शाम को लल्लू फिर मूंगफली का पैकेट ले आया।पिता जी गेट पर ही खड़े थे,पूछा क्या लाए हो?
लल्लू ने एक छोटा सा पैकेट दिखाते हुए कहा, “कुछ नहीं, थोड़ी मूंगफली है”,और भीतर जाने लगा ।पिता जी ने पैकेट छीन लिया ।एक मूंगफली फोड़ा तो भीतर तरल पदार्थ निकला । बात उन्हें पहले से पता थी ।गुस्से में तमतमाये उन्होंने लल्लू को कस के एक तमाचा जड़ दिया और वह विशेष मूंगफली का पैकेट उसके सामने ही जाकर बड़े नाले में फेंक दिया ।नाले से ‘छपाक ‘ की आवाज सुनाई दी ।
(और इस ‘छपाक ‘ की आवाज के साथ ही मेरी सुबह की गहरी नींद खुल गई और कहानी का तारतम्य टूट गया ।घड़ी में 7 बज रहे थे ।सोचा, चलो सपने का अंत तो अच्छा ही हुआ ! निस्संदेह ऐसे ‘लल्लूओं’ को ऐसे ही थप्पड़ की जरूरत है।)
********************************************
—-राजेंद्र प्रसाद गुप्ता।