नशीली आंखें
ऐसे ही नहीं
हम उनके दीवाने हैं
चलते-फिरते
वह तो मयखाने हैं…
(१)
जिसके नसीब में
ऐसा शवाब
उसके लिए फीकी
बाक़ी शराब
होंठों से लेकर
आंखों तक
सारे अंग
उनके पैमाने हैं…
(२)
उनका अल्हड़पन
अपनी मस्ती
देखकर हाय करे
बस्ती-बस्ती
चाहे आप
जिधर जाइए
चारों ओर
हमारे अफसाने हैं…
(३)
जब से हमें
उनसे प्यार हुआ है
बिल्कुल नया
संसार हुआ है
आजकल हमें
तो लगता जैसे
महफ़िल से
बेहतर वीराने हैं…
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Shekhar Chandra Mitra
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