नव वर्ष
हाड़ कंपाती ढंड, ठिठुरता मानव, प्रकृति स्पंदनविहीन कैसे हो सकता है नव वर्ष और उत्सव। मकर संक्रांति फिर वसंत पंचमी, उसके बाद शिवरात्रि तब होलियान संवत्सर, युगादि नया संवत्सर बिहान। महाविषुव नया साल – संतुलन, दिन रात बराबर। नवरात्रि भर व्रत, पर्व, उत्साह, नवमी को नये अनाज की रोटी खा के समापन।
दुनिया का सबसे शुद्ध कलेंडर(पञ्चाङ्ग) विक्रम सम्वत है। जिसका नववर्ष 2078 वर्ष पूर्व भी चैत्र प्रतिपदा था और आज भी वही है।
दुनियाभर में 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नववर्ष कभी 25 मार्च को मनाया जाता रहा तो कभी 25 दिसंबर को मनाया गया।
दुनिया को ज्ञान सिखाने का दावा करने वाले पश्चिम कलेण्डर की शुरुआत 10 माह वाले कलेण्डर से हुई थी जिसमें साल में कुल 310 दिन और सप्ताह में 8 दिन थे. जिसे जूलियन ने सुधारकर 12 माह किया लेकिन लीप ईयर चूक गए. सन 1582 ई में पोप ग्रेगरी ने इसे सुधारकर सही किया और तब से दुनियाभर में 1 जनवरी से नया वर्ष मनाने की शुरुआत हुई जिसका ना तो कोई प्रकृति से लेना देना है ना ग्रहों की गणना या पंचाग से. ये एक प्रकार का शोकेस न्यू ईयर है।
लोगो के मन मे अक्सर ये डर देखा जाता है कि हम 1 जनवरी को जो भी करेंगे वो सालभर करना पड़ेगा, इसलिए वे दिनभर कुछ अच्छा करने का प्रयास करते है, नई शुरुआत की बातें करते है, नए नए संकल्प लेते है जबकि 1 जनवरी भी एक सामान्य दिन है ठीक प्लास्टिक ट्री की तरह है जो ना ऑक्सीजन देता है ना ही औषधि।लेकिन जिस नववर्ष का सीधा सम्बंध प्रकृति, ग्रहों की चाल औऱ मानव जीवन से जुड़ा है उस नववर्ष चैत्र प्रतिपदा को हम नही मनाते।
मज़ेदार तथ्य है कि जिस 1 जनवरी के दिन हम ये मानकर मंदिर जाते है कि हे प्रभु ! वर्षभर सब अच्छा रहे उस नववर्ष का मंदिर से कोई लेना देना नही लेकिन जिस चैत्र प्रतिपदा नववर्ष से मंदिर, प्रकृति का लेना देना है उसे हम मनाते ही नही।
बहरहाल आप 1 जनवरी न्यू ईयर मनाना चाहते है तो मनाइए इस बहाने मंदिर तो जाएंगे लेकिन चैत्र प्रतिपदा भी अवश्य मनायें क्योंकि इसका सीधा सम्बंध विज्ञान, प्रकृति से जुड़ा है। जीवन मे बदलाव प्लास्टिक क्रिसमस ट्री पूजने से नही होता अपितु ऑक्सीजन युक्त पीपल, औषधि युक्त तुलसी पूजने से होता है।
प्रकृति का नववर्ष चैत्र प्रतिपदा..
केलंडर बदलिए संस्कृति नही।