नव रश्मियों में
गीतिका
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एक आकर्षण भरा है सूर्य की नव रश्मियों में।
नव उमंगें जग रही हैं हर जगह सब बस्तियों में।
पेड़ हरियाली भरे हैं चाहते आकाश छूना।
गीत गाते हैं परिंदे खूबसूरत घाटियों में।
चाहतें उन्मुक्त होकर जिन्दगी में बढ़ रही जब।
झांकते हैं स्वप्न सुन्दर कल्पना की खिड़कियों में।
खोल कर रखने जरूरी हैं हमें मन के झरोखे।
हो कहीं भी हम विचरते राह में पगडंडियों में।
स्नेह हो मन में भरा जब पास आ जाते सभी जन।
कोशिशें होती सफल जब मंजिलें हैं दूरियों में।
पारदर्शी झील में प्रतिबिम्ब सुन्दर बादलों के।
खूब प्रिय लगते हमें तब कांपती परछाइयों में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०५/०८/२०२४