नवरात्रि
सूबेरपुर ग्राम में जमींदार अपनी पत्नी नैना और पुत्र सोहन तथा बहू सुमिरन सहित रहते थे । दिन प्रतिदिन की जिन्दगी भलीभांति चल रही थी , जमींदार ने बेटे का ब्याह पास के गांव के जमींदार की बेटी के साथ कर दिया । समय बीतता गया । पर सुमिरन के सालों बीत जाने के बाद भी कोई संतान न थी । जिससे उसकी सासु माँ जी और सोहन चिड़चिड़े हो गये । ग्रामीण परिवेश में वंश का नाम चलने की चिंता जमीदार और जमीदारिन को खाये जा रही थी । अगला वारिस कोन होगा इस चिंता को व्यक्त करते हुए जमीदारिन नैना ने बहू सुमिरन से कहा ,” बहू क्यों न किसी वैध हकीम को दिखाती , अगल बगल के लोग कानाफूसी करते है ” । इस तरह अडोसी – पड़ोसियो के ताने सुमिरन को तंग करने लगे थे । सोहन भी अक्सर कहा करता ,” मेरे सब दोस्तों के सन्तान है एक अभागा मैं ही हूँ ,” पति का ताना सुन सुमिरन , सोच में पड़ जाती । क्या करूँ क्या न करूँ ।
जमींदार के घर एक कामवाली कनक आया करती थी , जो कभी कभी अपनी बेटी , जो तीन साल की थी , ले आया करती थी । सुमिरन उसको गोद में बिठा दुलारती और माँ सुलभ प्यार दिखाती , ऐसा देख सासु माँ ताना मारती हुई कहती ,” तेरी अपनी गोद तो भरी नहीं , नौकरानी की बेटी को दुलार रही है ” । सासु के ताने सुन सुमिरन के आग लग जाती पर क्या करती । धीरे धीरे समय बीतता गया । तब ही उस गांव में एक सिद्ध बाबा आए जो समस्या निवारण करते थे । जब सुमिरन ने उन बाबा के विषय में सुना तो सुमिरन ने पति से वहाँ चलने आग्रह किया । पति पत्नी ने वहाँ पहुँच प्रणाम कर ‘ बाबा की जय ‘ बोल समस्या बतायी । बाबा ने कहा ” आश्विन मास के शारदीय नवरात्र विधि विधान से व्रत उपवास पति पत्नी करे तो सन्तान की प्राप्ति होगी ” ।
वापस घर लौट कर सोहन और सुमिरन ने सारी बात माँ को बताई । श्रद्धा भाव रखते हुए माँ नैना और जमीदार ने दुर्गा माँ का दरबार सजवा कर और घट स्थापना करवायी । जमीदार , जमीदारिन बेटा और बहू नित्य कर्म से निवृत्त हो विधि विधान से बेटे सोहन और बहू सुमिरन सहित नवरात्रि पूजा करने लगे । नवमी आने पर चना हलवा का भोग बना कंचुकियों को भोग लगाया ।
एकरात्रि सुमिरन को आभास हुआ जैसे कोई कन्या माँ माँ कह पुकार रही हो , स्वप्न के अभिप्राय को जानने के लिए गत रात का सपना सासु माँ को बताया । सासु ने कहा ,” घर में देवी रुप में माँ किलकारी भरेगी । दिन बीतते देर न लगी दुर्गा माँ की कृपा से सुमिरन के पैर भारी हो गये और नौ मास बाद उसे पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई । पुत्री का नाम शारदा रखा , दिन प्रतिदिन वह कन्या चन्द्रमा की कला की तरह बढ़ती गयी ।