नवरात्रि लेख
हो.सकता है मेरे इस आलेख से आप सभी सहमत न हों।
नवरात्रि और दशहरा पर मेरे स्वप्रेरित विचार
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शुभ संध्या मित्रो
जय माँ शारदे
विजय दशमी की हार्दिक अनंत शुभकामनाएँ।????
सृजन मित्रो ,विगत नौ दिन से माँ की आराधना में रत आप सभी को स्वयं को जानने समझने का अवसर मिला।आशा है स्वयं को जाना समझा होगा ।अपनी शक्ति को परखा होगा ।पर क्या वास्तव में आपने स्वं को स्वशक्ति चेतना ,आसुरी वृत्तियों को ,अपनी सँस्कृति अपने पर्वों के महत्व को समझा?शायद नहीं।
वही माँ के लिए सृजन,शब्दों की हेरा फेरी।
जहाँ देखो वहाँ माँ के भक्ति गीतों पर गरबा,डाँडिया या डाँस—-याद रखिये हमने नृत्य नहीं कहा।
और इन के परिधान ?सात्विक पर्व को ,आत्माराधना के पर्व को देह प्रदर्शन से जोड़ कर क्या यह साबित किया गया कि हम विदेशी सभ्यता के नंगेपन से इतने प्रभावित हैं कि अपने पर्वों में उसको स्थान देने लगे।
ध्यान रहे हमारे भारतीय पर्व भारतीय सँस्कृति ,रीति रिवाज,फसल ,ऋतु-ऋतु परिवर्तन व जीवन प्रसंगों से जुड़े हैं।
नव रात्रियाँ ..यानि वो पवित्र नौ दिवस जिनमें हम खान पान के नियम ,संयम को रखते हुये आत्म संयम को परखते हैं।यह ऋतुओं का संधिकाल.है अब शरद ऋतु की ठंडक हवा में घुलती जाएगी।खान पान बदलेगा इसलिए उसके पूर्व नौ दिन तक हमें अपने शरीर को शुद्ध करना है ।नव ऊर्जा एकत्रित करनी है।व्रत ,उपवास द्वारा तन-मन को आंतरिक रुप से तैयार करना ही इस पर्व का उद्देश्य है। आसुरी प्रवृत्तियों पर विजय पाने हेतु ही आज विजय दशमी मनाई जाती है।
पौराणिक प्रसंग जिससे जोड़ कर आज सभी रावण दहन के लिये उल्लसित है।
राम अयोध्या से निष्कासित होकर पाँव पाँव जंगल ,शहर ,गाँवों को नापते जा रहे थे ।कंदमूल ,हरे शाक उनको आंतरिक ऊर्जा के साथ भूख मिटाने में सक्षम थे।बालि वध के बाद सुग्रीव ने सीता को ढूंढने का आश्वासन दिया। वनवासी राम प्रतीक्षा में थे पर चूंकि आषाढ़ लग चुके थे। पृथ्वी इन दिनों गर्भवती होती है।बिना बीज के ही पौधे ,लतायें पुस्पित पल्लवित हो जाती हैं।ऐसे समय ज्ञानी सुग्रीव ने व्याकुल हृदय राम को चातुर्मास का बताया। और राम ने चार माह प्रतीक्षा करना स्वीकार किया।तब तक हनुमान जी के द्वारा सीता की खोज की गयी।भादों तक वर्षा का जोर ज्यादा रहता है तो क्वार में राम ने अपने उद्देश्य हेतु आगे बढ़ना शुरू किया। पितृपक्ष आने पर वह अरबमहासागर से कुछ दूर पेंठण नामक स्थान पर रुक गये। क्यों कि यह पंद्रह दिन शुभ कार्यों के लिए बाधित थे। वो पैंठण में ही ईश की आराधना में बैठ गये।
पितृपक्ष खतम होने पर सभी वानर वंशी व राम हितैषी लंका पर चढ़ाई के लिए उद्यत थे।पर यहाँ राम ने नौ दिन का संकल्प किया ।और शक्ति आराधना में लीन हो गये।इन नौ दिनों में राम ने अपने मन से सभी के प्रति क्रोध ,ग्लानि ,मोह आदि भावों तिरोहित करते हुये सच्चे मन से मन की शक्ति को जागृत किया। कहते हैं नौ दिन राम शक्ति आराधना में इतने निमग्न हो गये कि क्षुधा तृषा का भान ही न रहा।
उधर उनकी वानरवंशी सेना समुद्र पार करने हेतु उपाय खोजने में लगी थी।और फिर वहाँ वह पत्थरों का विश्वविख्यात #रामसेतु पुल बनाया गया।
जब राम नौ दिन बाद पूर्णाहुति देकर उठे तो उनके मुख मंडल पर दैदीप्यमान तेज था। संकल्प था और थी आत्मिक शक्ति। ।उसके बाद ही श्रीलंका प्रस्थान किया लेकिन शांत चित्त से, आकुलता रहित ।बाद की घटनाओं से आप विदित हैं।
अब आते है #दशहरा व #रावण दहन पर
~♀~♀~♀~♀~♀~♀~♀~♀~नौ दिन बाद जब राम ने तप ,नियम संयम से अपने मन की कमजोरी पर विजय पाई तब तेज ,दृढ़ निश्चय उनके मुख मंडल को दैदीप्यमान बना रहा था ।और वह आत्मिक रुप से बहुत प्रसन्न थे ।तब वहाँ यह नव दिन की भक्ति पूर्ण होने पर विजय रुप में जश्न मनाया गया। वह विजय दशमी पर्व था। क्यों कि इन नौ दिनों यथा शक्ति राम की सेना ने भी व्रत ,संकल्प लिये थे जो निर्विघ्न पूर्ण हुये थे। यहाँ सोचना यह है कि जब नवरात्रों में रावण की मृत्यु ही न हुई तो दहन किसका और क्यों??????
रावण ने प्रारब्ध अनुसार सिर्फ सीता हरण किया था ।वह भी अपनी बहन के प्रति स्नेह के लिए। एक भाई अपनी बहन का अपमान नहीं सह सकता था। वह अनिंद्य सुंदरी थी ।पर तप के द्वारा कुछ सिद्धियाँ प्राप्त थी जिसमें रुप बदलने की विद्या भी शामिल थी।सीता भी तेजस्वी व्यक्तित्व की स्वामिनी थी ।चारित्रिक दृढ़ता का तेज मुख मंडल पर दमकता रहता था।रावण जो राम लक्ष्मण को सबक सिखाने आया था,सीता को देख ठगा रह गया।भूमिगोचरी स्त्री में इतना तेज !!!!बस इसलिए उसका अपहरण किया ताकि राम लक्ष्मण उसकी अधीनता स्वीकार कर लें।न उसने सीता को स्पर्श किया न बलात्कार और न ही किसी दुर्भावना से सताया ही था। ब्राह्मण वंशी त्रषि पुत्र में थे इतने संस्कार।
लंका पहुँच कर युद्ध की अनेक विधाओं का संचालन प्रारंभ हुआ ।उसके बाद लंबे समय तक चला निर्णायक युद्ध।और फिर अजेय रावण की मौत का राज विभीषण ने बताया ।तब लक्ष्मण ने रावण वध किया। उसके मरण से पहले राम ने लक्ष्मणको ,रावण से राज नीति सीखने को भेजा।
क्या संभव है कि मात्र पंद्रह.बीस दिनों में लंका पहुंच कर रावण का वध और बीस दिन में अयोध्या भी वापिस आगये कार्तिक की अमावस्या को राम ?????
या फिर यह युद्ध आदि एक साल तक चला था?
दूसरा सवाल रामायण काल लगभग पाँच हजार साल पुराना है तब से रावण क्या अनवरत जलाया जा रहा है प्रतीक रुप में??
तीसरा सवाल महाभारत काल में जो राम के बाद का समय है उस समय दुर्योधन ने भरी सभा में द्रोपदी का चीर हरण किया था।उस के बालों को पकड़ा था ।,जंघायों पर जबरन भरी सभा में बिठाया था फिर दुर्योधन को माफ करने का क्या कारण ????आज तक उसका कभी पुतला दहन न किया गया।
जैनागम में कहते हैं जब तक जीव जन्म मरण से छुटकारा न पा ले तब तक जीव तत्व मौजूद रहता है ,किसी भी पर्याय में रहे।रावण मरते वक्त पश्चाताप की अग्नि में इतना जला कि तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया ।
आगामी 84,000वर्षों बाद वह चौबीस तीर्थंकर की परंपरा में 16वाँ तीर्थंकर बनेगा ,ऐसे पुरूष को जिसे हम आगामी भव में (पता न किस पर्याय में होंगे एक इंद्रिय से पंचेंन्द्रिय जीव रुप में )उसे नमस्कार करेंगे। ऐसे भव्य जीव को जो 84,000वर्षों बाद इस जन्म मरण से छुटकारा पा लेगा उसको आज प्रतीक रुप में अपमानित करके अपनी आसुरी प्रवृतियों का परिचय नहीं दे रहे।
#विशेष —लाखों रुपये खर्च करके रावण आदि का पुतला बनाया जाता है और जला दिया जाता है।तब प्रदूषण ,महँगाई, गरीबी ,भुखमरी ,आदि की याद न आती?दीपावली ,होली ,शिवरात्रि या अन्य पर्वों पर याद आती है। ये दोगलापन क्यों?
मैं रावण दहन का बहिष्कार करती हूँ।
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मनोरमा जैन पाखी
सृजन कुंज