नवजात बहू (लघुकथा)
नवजात बहू (लघुकथा)
पिता की मृत्यु के बाद मोहन ने ही अपनी छोटी बहन छवि को पढ़ाया-लिखाया और अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान दहेज देकर एक शहरी परिवार में उसकी शादी कर दी। किन्तु उसकी सास आये दिन उसका ताना दे-देकर मानसिक उत्पीड़न करती रहती थी। समय के साथ ही मां के कहने पर मोहन ने भी शादी कर अपना घर बसा लिया और उसके घर प्यारी सी बेटी ने जन्म लिया। उधर छवि की ननद दीपा को भी पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। इधर छवि की सास का उत्पीड़न उसके प्रति बढ़ता ही जा रहा था एक दिन मोहन अपनी एक वर्षीय पुत्री को लेकर दीपा के घर पहुंच गया और यह कहते हुए अपनी पुत्री दीपा को थमा दी कि इसे आप खुद ही रखो और सिखाओ-पढ़ाओ अन्यथा भविष्य में कभी तुम्हारे बेटे से इसका रिश्ता हुआ तो तुम भी यही कहोगी जो तुम्हारी माँ मेरी बहन छवि से कहती है कि “मायके वालों के सिखाये में चल रही है।” दीपा की ससुराल के सभी सदस्य निरुत्तर मौन खड़े मोहन का मुंह देख रहे थे।
-दुष्यन्त ‘बाबा’
पुलिस लाईन, मुरादाबाद।