नवगीत
दर्द की
स्याही से
खुशी के गीत
लिखता हूँ…
शब्द चेहरे से
निकलतें हैं,
जब चमक जैसे I
फूट पड़तें हैं
भाव मन की
तब दमक जैसे ॥
वक्त के साथ,
ज़िन्दगी के
गीत लिखता हूँ..
मौन मुस्कान की
तरह ही ,
कभी खिलता है।
जब भी
अनहोनियों के ,
रास्तों पर
मिलता है ॥
उसी समय मैं,
रोशनी के गीत
लिखता हूँ..
कौन पढ़ता है
मुझे,कौन नही
पढ़ता है।
मेरा दिमाग नही,
इस पर
कभी लड़ता है ॥
मैं महज़ आज आदमी
के गीत लिखता हूँ..