नवगीत
एक नवगीत,,….
कोई कृष्ण न आएगा
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सम्हल द्रौपदी शस्त्र उठा अब
कोई कृष्ण न आएगा ।।
वो द्वापर था कृष्ण संग था
तेरा कर्ज चुकाया था
सहस्त्र चीर दे कर जिसने
अस्मिता को बचाया था
इस कलयुग में सभी चन्द्रमा
कोई तरस न खायेगा ।।
न कोई मातु न कोई बेटी
पहले सब ही नारी हैं
नारी भी केवल भोग्या है
वहशीपन की प्यारी है
सबला हो कर मर्द बनो अब
शस्त्र साथ निभाएगा ।।
चलना सिर पर कफ़न बाँध कर
राहों में बाजारों में
किसी आपदा की शंका हो जब
दब जाना दीवारों में
तांडव करके रक्तपान का
काम अस्त्र ये आएगा ।।
चण्डी बन कर तांडव कर ले
धर त्रिशूल महिषासुर में
अब पहचानो अपने शौर्य को
घूम मचा तीनो पुर में
राह देखते सभी शस्त्र अब
अपना काम बनाएगा ।।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र
9717260777
sushilajoshi24@gmail.com
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