नवगीत
एक रचना
अवसादों के मुख पर जब भी,
मला आस का उबटन।
उम्मीदों के फूल खिलाकर,
हँसती हर एक डाली।
दुखती रग को सुख पहुँचाने,
चले पवन मतवाली।
अँधियारे ने बिस्तर बाँधा,
उतरी ऊषा आँगन ।
अवसादों के मुख पर …
पाँवों में पथरीले कंकर
चुभकर जब गड़ जाते,
मन के भीतर संकल्पों के
ज़िद्दीपन अड़ जाते।
पाने को अपनी मंज़िल फिर
थकता कब ये तन- मन !
अवसादों के मुख पर जब भी…
जब डगमग नैया के हिस्से
आया नहीं किनारा,
ज्ञान किताबी धरा रह गया
पाया नहीं सहारा।
अनुभव ने पतवार सँभाली
दूर हो गयी अड़चन ।
अवसादों के मुख पर जब भी
मला आस का उबटन।
मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद27-6-2021