नवगीत: ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ
कहाँ से लाऊँ ?
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
तमस नाश करता है दीपक
रोग शोक हरता है दीपक
पीर हरे जो किसी दीन की
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
दीपक जलता जगमग
चतुर्दिशा आलोकित लगभग
मन में जो उजियारा कर दे
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
ज्ञान रूप जलता है दीपक
शुभता भी लाता है दीपक
निर्बल को जो सबल बना दे
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
उत्सव मेले रोज लगेंगे
होली दिवाली रोज मानेंगे
नफरत तम जो दूर भगा दे
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
जन्म मरण का पहरा बैठा
असमय मौत से हो छुटकारा
आत्मघाती को जो सुध दे दे
ऐसा दीप कहाँ से लाऊँ ।।
सुशीला जोशी, विद्योत्तमा
मुजफ्फरनगर उप्र