नर हो न निराश
नर हो न निराश करो मन को ।
करो धन्य इस मानव तन को।।
देव तुल्य तन प्रभु से पाया ।
मात पिता गुरु धर्म सिखाया।।
कर्म फलित का दिया विधाना।
कथनी करनी जग ईमाना।
स्वार्थ त्याग परहित कर मन को।
नर न हो निराश करो मन को ।।
बड़े भाग्य यह मिला शरीरा।
जन्म सफल कर हे मतिधीरा।।
राजकुँवर कर तुझको भेजा।
जग माली का फर्ज सहेजा ।।
प्रेम भाव सब प्राणी जन को।
नर न हो निराश करो मन को ।।
खाली हाथ जगत में आया।
भ्रमित हुआ देखत जग माया ।।
भूल गया प्रभु का उपदेशा।
किया नहीं कुछ कर्म विशेषा।।
व्यर्थ समझ जीता क्यों धन को।
नर न हो निराश करो मन को ।।
राजेश कौरव सुमित्र