नर्मदे हर
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर ,नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर।
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर ।
मिला यही वर है रूप शिव का किनारे पर जो डला हो कंकर।।
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर।।
किसी की छूटी है मोह माया,कोई करे है पवित्र काया ।
जो भक्त जैसे भी भाव लाया,न लौटा खाली वो सब है पाया।
पूर्ण होती मनोकामना जो दर्शनों को हैं जाते तट पर।
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर।।
घाट घाट साधु सन्यासी किनारे चलते परिक्रमा वासी ।
श्रद्धाभाव से आते प्रवासी पाएं पुण्य सदाब्रत से निवासी
कोई कुटी में मगन भजन में कोई मजे में है अपने घर पर।
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर ।
शहर के नाले पसारे बाहें, रेत खनन से भी माँ कराहें।
जो कष्टप्रद अब हुई हैं राहें, किसे पुकारे दुखी निगाहें ।
वो तुमको पापा से मुक्त कर दें तू गंदगी से उसे मुक्त कर
नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर नर्मदे हर हर।।
✍श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव