नया साल -नन्हा बच्चा
नए साल का नया दिन
एक नन्हा सा बच्चा
समझ से कच्चा
सोचता है दुनिया मेरे स्वागत को खड़ी होगी
जनवरी की पहली तारीख को मेरे आने की उत्सुकता बड़ी होगी।
परंतु वह देखता है
पिछले साल की तुलना में
झूठ फरेब का साम्राज्य और अधिक बढ़ गया
किसान, गरीब दुकानदार पर कर्जा चढ़ गया
रुपये की कीमत फिर से गिर गई
युद्ध के बादलों से दुनिया घिर गई
थानेदार की कीमत बढ़ गई
पड़ौसी, पड़ौसी से और ज्यादा जलने लगा
निष्ठा, नैतिकता जाती रही
बेईमानी का असर चलने लगा।
रोटी,कपड़ा, मकान,शिक्षा, स्वास्थ्य
सुरक्षा का खतरा और बढ़ गया।
नया साल बड़ी उम्मीद से आता है
नई तारीख लेकर
किंतु उसे पता नहीं मानवता कितनी गिर गई।
सालों से यही होता आया है
उम्मीद पर धरती कायम है
बीता कालखंड पन्नों में रह जाता है
नयापन सबको भाता है।