नया दौर
हम सभी रफ्तार से चलने लगे हैं।
शीघ्रता से दिन सभी ढलने लगे हैं।।
कर रहे हैं बात अपनी ऊँगलियों से।
पास के सम्बंध अब खलने लगे हैं।।(१)
भावनाओं के भँवर छलने लगे हैं ।।
मूक रहकर होंठ अब गलने लगे हैं ।।
खत्म होती जा रही संवेदनाएं ।
ईर्ष्या से लोग अब जलने लगे हैं।।(२)
जगदीश शर्मा सहज
अशोकनगर