नयन में उतर जाओ
मुक्तक
नयन के द्वार से आकर मे’रे उर में उतर जाओ।
महक बन प्रेम के गुल की हृदय में तुम बिखर जाओ।
सकल – जग- प्राणियों में बिंब तेरा ही दिखे प्रतिपल।
नजर में सत्य की कोई कन्हैया दीप्ति कर जाओ।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ(म.प्र.)