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25 Sep 2023 · 1 min read

नमन तुम्हें नर-श्रेष्ठ…

जन-जन के आदर्श तुम, दशरथ नंदन ज्येष्ठ।
नरता के मानक गढ़े, नमन तुम्हें नर-श्रेष्ठ।।१।।

जीवन के हर क्षेत्र में, बढ़े निडर अविराम।
ज्ञान-भक्ति अरु कर्ममय, कर्मठ योद्धा राम।।२।।

राम सरिस हो आचरण, राम सरिस हो त्याग।
मिटें तामसी वृत्तियाँ, जागें जग के भाग।।३।।

मन-कागज जिव्हा-कलम, रचे नव्य आलेख।
राम-राम बस राम का, बार-बार उल्लेख।।४।।

हृदय कामनागार तो, कामधेनु हैं आप।
एक छुअन भर आपकी, हर ले हर संताप।।५।।

तोड़ न कोई राम का, निर्विकल्प हैं राम।
राम सरिस बस राम हैं, और न कोई नाम।।६।।

कण-कण में श्रीराम हैं, रोम-रोम में राम ।
मन-मंदिर मेरा बने, उनका पावन धाम ।।७।।

धर्म युद्ध सबसे बड़ा, समर भूमि कुरुक्षेत्र।
गीता का उपदेश सुन, खुलें सभी के नेत्र।।८।।

चिंता करते व्यर्थ तुम, नश्वर है ये देह।
फल कर्मों का साथ ले, जाना प्रभु के गेह।।९।।

मृत्यु समझते तुम जिसे, नवजीवन – सोपान।
अजर अमर है आत्मा, बात सत्य यह जान।।१०।।

तन ये माटी का बना, माटी में हो अंत।
माटी में मिल जग मिटे, माटी रहे अनंत।।११।।

© डॉ0 सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ0प्र0 )

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