नफ़रतें बेहिसाब आने दो।
नफ़रतें बेहिसाब आने दो।
एक बोतल शराब आने दो।
कब तलक यूँ ख़फा रहोगे अब,
ख़त में रक्खे गुलाब आने दो।
ख़त्म कर दो न कश्मकश मेरी,
वक़्त बे-वक़्त ख़्वाब आने दो।
रोशनी से चिराग यूं बोला,
सामने आफताब आने दो।
कर्ज बाक़ी जो इश्क़ का हम पर,
वो अधूरा हिसाब आने दो।
कोरे पन्नों सी ज़िन्दगी मेरी,
कुछ भी लिक्खो क़िताब आने दो।
रंग मौसम का भी बदल देंगे,
हुस्न पर बस शबाब आने दो।
पंकज शर्मा “परिंदा”