नफरतों की आग
नफरतों की आग मे झुलस गए घर मेरे घर उनके भी?
सूनी हो गई आंगन न जाने कितनों की?
कहता है ‘किशन’ अब हर किसी से यहि
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं.
शायर©किशन कारीगर
नफरतों की आग मे झुलस गए घर मेरे घर उनके भी?
सूनी हो गई आंगन न जाने कितनों की?
कहता है ‘किशन’ अब हर किसी से यहि
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं.
शायर©किशन कारीगर