नदिया
नदियों पर जिस तरह से राजनीती हो रही है यह आने वाले धरातल पर विषम परिस्थिति की ओर इशारा करती है !
नदिया धरातल पर केवल जल स्त्रोत ही नहीं है !
बल्कि बिना नदियों के हम भारतीय संस्कृति की कल्पना भी नहीं कर सकते है !
भारत ही नहीं वरन विश्व की समस्त सभ्यताए नदियों के ही आँचल में पली बढ़ी है चाहे वो सिंधु घाटी सभ्यता हो चाहे हड़प्पा मोहन जोदड़ो !
भारत के संदर्भ में तो इसका नाता और भी गहरा है क्योकि यहाँ नदियों को केवल जल स्त्रोत ही नही माँ का स्थान दिया गया है !
नदियों का जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे देश में रिश्ता जुड़ा हुआ है !
नदिया धार्मिक महत्व के साथ ही साथ आर्थिक और सामाजिक महत्व को भी दर्शाती है .हमारी भारतीय संस्कृति में धर्म के परिप्रेक्ष्य में नदियों की उपयोगिता अपने आप अद्वितीय अनुपम और पावन है !
नदियों के धार्मिक महत्व अपने आप में ये श्रेष्ठता को साबित करते है की हम नदियों को जीवन से मुक्ति का मार्ग मोक्ष दायिनी मानते है !
जिस तरह से आज नदियों के अस्तित्व पे संकट आ गया है यह निश्चय ही चिंता जनक है जो भविष्य के लिए सुखद संकेत नहीं है !
अतः इस पर राजनीती न करते हुए इसके इसके उद्धार के लिए सार्थक प्रयास होने चाहिए !
अन्यथा नदियों के अस्तित्व के साथ ही संस्कृति सभ्यताओं समाज व् मानव जाती के अस्तित्व भी नष्ट हो जाएंगे !!!