नदिया का नीर
यह नदिया का नीर प्रिये
इसे सतत बह जाने दो
सुस्मित मुखी अद्भुत जिज्ञासा
लिए हृदय में अतृप्त पिपासा
सदियों से है गतिमान
प्रतिपल हृदय में कोटि निर्माण
मन भावों की सरिता के
सतत प्रवाह का विधान,
छल-छल कल-कल द्रुत-मंथर
नृत्य अलौकिक, हो जाने दो
यह नदिया का नीर प्रिये
इसे सतत बह जाने दो
देवों का इच्छित वरदान
अनादि काल से प्रवाहमान
कृषक अधीर की, तृप्ति, प्राण
समाती सभ्यताएं, हो महाप्रयाण
सार्वभौम का इंगित पाकर
तोड तटों को, होती विकराल
दूर किनारे बैठ सखा तुम
जो होता है, हो जाने दो
यह नदिया का नीर प्रिये
इसे सतत बह जाने दो
जन्मों की है विकट साधना
संभव है फिर कहां बांधना
अकाट्य पाश तोड़े हैं इसने
अतुल आलोक सहेजा इसने
न टिकी पलक पर ओस अभी
ये श्रम कण हैं , रह जाने दो
पारावर मिलन को आतुर
निर्बाध इसे तुम मिल जाने दो
यह नदिया का नीर प्रिये
इसे सतत बह जाने दो।।